________________
२८४
* पार्श्वनाथ-चरित्र * होगा जो छः खण्डोंका अधिपति एवम् चक्रवर्ती होगा।” स्वप्नों का यह फल सुनकर राजा और रानोको बड़ा ही आनन्द हुआ। इसके बाद गर्भकाल व्यतीत होनेपर जिस तरह पूर्वदिशा सूर्यको जन्म देती है, उसी तरह रानीने एक तेजस्वी पुधको जन्म दिया । राजाने बड़े समारोहके साथ उसका जन्मोत्सव मनाया और उसका नाम सुवर्णबाहु रखा। जिस प्रकार शुक्ल पक्षमें चन्द्रकी कलायें बढ़ती हैं, उसी तरह माता पिताके लालन-पालनसे सुवर्ण बाहु भी बढ़ने लगा। क्रमशः उसने बाल्यावस्था अतिक्रमण कर योवनको सीमामें पदार्पण किया। इस समय तक उसने समस्त विद्या और कलाओंमें पारदर्शिता प्राप्त कर ली थी। इधर राजा वज्रनाभको भी वैराग्य आ गया था, इसलिये उसन अपने इस सुयोग्य पुत्रको राज्य-भार सौंपकर दोक्षा ले ली। और निरतिचार पवित्र चारित्रका पालन करनेके बाद केवल ज्ञान प्राप्त कर मोक्षकी प्राप्ति की। ___ जिसका विशाल वक्षस्थल है, वृषभके समान स्कंध है, विशाल भुजायें हैं, जो कर्तव्य पालनमें सदा तत्पर रहता है और जिसका शरीर क्षात्रधर्मके लिये आश्रय समान हो रहा है ऐसा सुवर्णबाहु राजा प्रेमपूर्वक अपनी प्रजाका पालन करने लगा। उसके राउपमें किसी समय ईतियोंका उपद्रव न होता था । ईतियां सात मानी गयी हैं। वे इस प्रकार हैं
"अतिवृष्टिरनावृष्टि-मूषकाः शलभाः शुकाः। स्वचक्र परचक्र च, सप्तता ईतयः स्मृताः ॥"