SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 309
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ૨૭૬ * पाश्वनाथ-चरित्र * wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm सहायता करना ।" राजाकी यह बात सुन प्रभाकरको अव विश्वास हो गया कि पिताने जो बात कही थी, वह बिलकुल ठीक थी। स्त्री और मित्रके सम्बन्धमें भी उसे अब पूरा विश्वास हो गया। अतएव उसने राजासे क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने प्रपश्चका सारा हाल कह सुनाया और कुमारको भी उसी समय सेवकके साथ लाकर राजाको सौंप दिया। पुत्रको देखकर राजाको जितना हर्ष हुआ, उतना हो प्रभाकरकी बात सुनकर आश्चर्य हुआ। उसने फिर प्रभाकरको गले लगाकर कहा-“मन्त्री ! मैं आपको अपने भाईसे भी बढ़कर समझता हूँ। आपने मुझपर बड़े ही उपकार किये हैं। इसलिये आप यहीं रहकर आनन्द कीजिये।" इसके बाद प्रभाफर राजाके आदेशानुसार वहीं रहकर अपनो जीवन-यात्रा सुखपूर्वक बिताने लगा और दीर्घकाल तक ऐश्वर्यसुख भोगनेके बाद दीक्षा ग्रहण कर अन्तमें अनशन द्वारा स्वर्गसुखका अधिकारी हुआ ! __ गुरु-मुखसे यह धर्मोपदेश सुनकर कुबेरको शान हुआ और वह उनसे कहने लगा---'"हे भगवन् ! एक बार फिर मुझे संक्षेपमें धर्मका रहस्य समझानेकी कृपा कीजिये।” यह सुन गुरुने कहा“हे महाभाग! यदि तेरो धर्म श्रवण करनेको इच्छा है तो ध्यान पूर्वफ सुन !" ___ “विनय, उत्तम नियमों का पालन, धर्मोपदेशक गुरुकी सेवा, उनकी वन्दना, उनकी आज्ञाका पालन, मधुर भाषण, जिन पूजादिमें विषेक, मन, वचन और कायाकी शुद्धि, सत्संगति और
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy