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________________ રહ૪ * पार्श्वनाथ-चरित्र * अवसर कदापि हाथसे न खोना चाहिये।" यह सोचकर वह राजा के पास गयो और उससे एकान्तमें कहने लगी-“राजन् ! मैं आपसे एक सत्य बात कहने आयी हूँ। क्योंकि - "सत्यं मित्र: प्रियं स्त्रीभिरलीक मधुरद्विषा । अनुकूलं च सत्यं च, वक्तव्यं स्वामिना सह ।।" अर्थात्-"मित्रोंके साथ सत्य, स्त्रियोंके साथ प्रिय, शत्रुके साथ असत्य किन्तु मधुर और स्वामीके साथ अनुकूल सत्य बोलना चाहिये।” हे स्वामीन् ! कल मुझे मयूरका मांस खानेकी इच्छा उत्पन्न हुई थी, तब मैंने यह बात अपने पतिसे कहो। इसलिये उसने मेरे मना करनेपर भी आपके मयूरको मार डाला और उसका मांस खिलाकर मेरी इच्छा पूर्ण की। दासीको यह बात सुन राजाको बड़ाहो क्रोधसे आया। वह कहने लगा-"प्रभाकर तो ऐसा न था, किन्तु मालूम होता है कि दुष्टोंकी संगतिके कारण उसकी मति भ्रष्ट हो गयी है। अब उसे इस कार्यके लिये अवश्य ही शिक्षा देनी चाहिये । यह सोच कर उसने सिपाहियोंको आज्ञा दी कि प्रभाकरको इसी समय पकड़ लाओ और उसे नगरके बाहर ले जाकर मार डालो।” प्रभाकरको किसी तरह यह समाचार शोघ्र ही मालूम हो गया। उसने सोचा कि दो बातोंकी तो परीक्षा हो चुको। अब लगे हाथ इसी समय मित्रको भी आजमाना चाहिये। यह सोचकर वह लोभचन्दीके घरमें घुस गया और उससे गिड़गिड़ाकर कहने लगा-“हे मित्र ! मेरी रक्षा कर ! राजाके सिपाही मुझे पकड़ने
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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