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________________ * तृतीय सर्ग* लालन-पालन कर बड़ा किया था। अतः यह मयूर उसे बड़ा ही प्यारा था और वह उसे सदा अपनी नजरके सामने रखता था। एक बार प्रभाकरकी वह भार्यारूप दासी गर्भवती हुई । गर्भावस्थामें दोहदके कारण उसे मयूरका मांस खानेकी इच्छा हुई । अतः उसने प्रभाकरसे कहा-“यदि मुझे राजाके मयूरका मांस खिला दो, तो मुझे बड़ाही आनन्द होगा!" दासीको यह बात सुन प्रभाकरने सोचा कि राजाके प्यारे मयूरको मारकर उसका कोपभाजन बनना ठीक नहीं । अतः उसने दासोको प्रसन्न रखनेके लिये एक दूसरीही युक्ति खोज निकालो। तदनुसार उसने राजाके मयूरको कहीं छिपा दिया और एक दूसरे मयूरका वधकर उसके मांससे दासीको तृप्त किया। इस भेदको दासा जरा भी न जान सकी। इधर कुछ ही समयके बाद जब भोजनका समय हुआ और मयूर दिखलायो न दिया, तब राजा चारों ओर उसकी खोज कराने लगा। किन्तु उसका पता कहांसे चले ? उसे तो प्रभाकरने छिपा रखा था। निदान सब दास दासी निराश हो लौट आये। इससे राजाको बहुत ही दुःख हुआ और उसने नगरमें घोषणा करा दी, कि जो मयूरको ला देगा, उसे एक सौ स्वर्ण मुद्रायें इनाम दो जायगी। राजाकी यह घोषणा सुन, दासीके मुंहमें पानी भर आया। वह अपने मनमें कहने लगी-“मुझे इस परदेशी मनुष्यकी चिन्ता क्यों करनी चाहिये ? इसका चाहे जो हो। यदि मैं इस समय राजासे यह हाल कह दूं, तो मुझे सौ स्वर्णमुद्रायें इनाम मिल सकती हैं। इस धनसे प्रभाकर जैसे हजार प्रेमियोंको मैं जुटा सकती हूँ। मुझे यह
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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