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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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हरे मोथको कहते हैं । भ्रामर वृक्षको केवल छाल ही वर्जित है, अन्य अंग नहीं । खिल्लोहड़ा एक प्रकारका कन्द होता है । अमृतवल्ली लता विशेष है । मूलो प्रसिद्ध कन्द है। इसकी शास्त्रोंमें बड़ी हो दिन्दा की गयी है। कहा गया है कि लहसुन, गाजर, पांडु, पिण्डालु, मत्स्य, मांस और मदिरा, इनसे भी मूलक अधिक पापकारी है। इसे भक्षण करनेसे नरक और त्यागनेसे स्वर्गकी प्राप्ति होती है । जो नराधम को साथ मूली खाते हैं। वे सौ चान्द्रायणव्रत करनेपर भी शुद्ध नहीं होते ।” भूमिस्फोटकको कुकुरमुत्ता भी कहते हैं । यह वर्षामें अपने आप छत्राकार उत्पन्न होता है । द्विदल अन्नके अंकुर अर्थात् मूंग, उड़द, चना आदिके. वृक्ष । ढंकवास्तुल एक शाक विशेष है। यह पहले पहल जब उत्पन्न होता है, तब अनन्तकाय माना जाता है । सूकरवल्ल एक तरहके दाने होते है । पलांकी एक शाक विशेष होता है। कोमल किंवा कच्चा इसलो भी अनन्तकाय में परिगणित की जाती है । आल और पिण्डालु कन्दविशेष हैं । यह सभा अनन्तकाय गिने जाते हैं और इनका खाना वर्जनीय माना गया है ।
किन्तु यह केवल : बत्तीस ही अनन्तकाय नहीं हैं। इनकी संख्या अगणित है । इनकी जोवायोनि चौदह लाख बतलायी गयी है । अनन्तकायका लक्षण बतलाते हुए कहा गया है कि जिसकी गांठ, जोड़ या सन्धि गुप्त होती हैं, जिसे तोड़नेसे समान टुकड़े होते हैं, जिसमें नसे नहीं होतीं और जो काटकर रोपे जाते हैं वे सभी अनन्तकाय हैं । इससे विपरित लक्षणवाले प्रत्येक वनस्पति