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________________ २३६ * पार्श्वनाथ-चरित्र # भोजन में गिर पड़ी और उसे खा जानेके कारण श्रावकको जलोदरका भयंकर रोग हो गया । और कुछ दिनोंके बाद इसी रोगके कारण उसकी मृत्यु भी हो गयी । इस तरह रात्रि भोजनकी प्रतिज्ञा भंग करनेके कारण मृत्युके बाद मार्जार योनिमें उसका जन्म हुआ और उस जन्ममें श्वान द्वारा कदर्थना पूर्वक मृत्यु प्राप्त होनेपर वह नारकी होकर नरक में गया । मिथ्यादृष्टि तो आरम्भसे ही रात्रि भोजनमें आसक्त था । एक बार कहीं रात्रिको भोजन करते समय वह विषमिश्रित आहार स्वा गया। इसके कारण उसे असह्य यन्त्रणा हुई और दूसरे ही दिन उसकी मृत्यु हो गयी । मृत्यु होनेपर श्रावकी भाँति मार्जार योनिमें जन्म होनेके बाद वह भी नरक गया । भद्रकने अपनी प्रतिज्ञाका दृढ़ता पूर्वक पालन किया इसलिये मृत्यु होनेपर वह सौधर्म देवलोक में महर्द्धिक देव हुआ। कुछ दिनोंके बाद श्रावकका जीव नरकसे निकलकर एक निर्धन के यहां उत्पन्न हुआ और उसका नाम श्रीपुंज पड़ा। भी इसी तरह उसी ब्राह्मणके यहां छोटे पुत्रके रूपमें और उसका नाम श्रीधर पड़ा । भद्रकदेवने जब देखा कि यह दोनों फिर मनुष्य रूपमें उत्पन्न हुए हैं तब वह उनके पास गया और उन्हें पूर्वजन्मका हाल बतला कर उपदेश दिया । भद्रकके उपदेशसे दोनोंने फिर रात्रिभोजन और अभक्ष्यादिक त्यागनेकी प्रतिज्ञा की और दृढ़ता पूर्वक इस प्रतिज्ञा का पालन करने लगे । यह सब भद्रकका प्रताप था । यदि ब्राह्मण मिथ्यादृष्टि उत्पन्न हुआ
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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