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________________ २३४ * पार्श्वनाथ-चरित्र * दिया। यह सुनकर इन्होंने रात्रि भोजन त्याग देनेको प्रतिज्ञा की। इनमेंसे श्रावकने रात्रि भोजन और कन्दमूलादि अभक्ष्य पदार्थोंको त्यागनेकी उत्साह पूर्वक प्रतिज्ञा की, क्योंकि वह श्रावक कुलमें उत्पन्न हुआ था। भद्रकने बहुत कुछ सोच विचार करनेके बाद केवल रात्रि भोजन ही त्यागनेकी प्रतिज्ञा की, किन्तु दुराग्रहमें ग्रसित होनेके कारण मिथ्या दृष्टिको तो कुछ प्रतिबोध ही न हुआ। कहा भी है कि : "भाग्रहो बत निनीति युक्ति तत्र यत्र मतिरस्य निविष्टा। पक्षपात रहितस्य तु युक्ति-यत्र तत्र मतिरेति निवेशम् ॥" अर्थात्-"कदाग्रहो पुरुष जहां उसको बुद्धि स्थित होती हैं,वहीं युक्तिको ले जाना चाहता है, किन्तु पक्षपात रहित मनुष्यको जहां युक्ति दिखायो देती है, वहीं उसकी बुद्धि स्थिर होती है।" श्रावक और भद्रकके परिवार वालोंने भी रात्रि भोजन त्यागनेकी प्रतिज्ञा की, क्योंकि यह एक साधारण बात है कि घरका मालिक जैसा आचरण करता है, वैसाही गृहके अन्यान्य मनुष्य भो करने लगते हैं। किन्तु श्रावक इस नियमको अधिक समय तक न निभा सका। प्रमादको बहुलताके कारण उसके नियममें दिन प्रतिदिन शिथिलता आती गयो। कार्यकी अधिकताके कारण वह सुबह और शामको त्याज्य मानो हुई दो घड़ियोंमें भी भजन करने लगा। कुछ दिनोंके बाद उसकी यह अवस्था हो गयी, कि वह सूर्यास्तके बाद भी भोजन करने लगा। भद्रक प्रभृति जब इसके लिये उससे
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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