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________________ २२० * पार्श्वनाथ-चरित्र - अनुचित कर डाला । देख, शास्त्र में भी प्रमादकी निन्दा करते हुए कहा गया है कि : "प्रमादः परमहेषी, प्रमादः परमो रिपुः । प्रमादः पुमुक्ति दस्युः. प्रमादो नरकायनम् ॥" अर्थात्-" प्रमाद परम द्वेषी है, प्रमाद परम शत्रु है, प्रमाद मोक्ष नगरका चोर है और प्रमाद ही नरकका स्थान है।" यह कहते हुए धनदेवने धनपालको पिताका पत्र दिखाया । पत्र पढ़कर उसने ठंढी सांस लेकर कहा-“बन्धु ! मेरे पास तो मार्गव्ययके लिये एक कौड़ी भी नहीं है । मैं पिताजीके पास पहुँच ही कैसे सकता हूँ?" धनदेवने कहा-“तू इसकी चिन्ता न कर। हमलोग तुझे अपने साथ ले चलेंगे और तेरा सारा राहखर्च हम देंगे। इस प्रकार तीनों भाइयोंकी सलाह हो जानेपर धनमित्र अपने घर गया और उस जौहरीसे रत्नोंका हिसाब मांगा । जौहरीने उसी समय उसे हिसाब दिखाते हुए कहा कि आपके रत्नोंका इतना व्याज हुआ, इसमें से इतना आपको दिया जा चुका है और इतना बाकी रहा। यह कहकर उसने तीनों रत्न और जो सूदकी रकम बाकी जमा थी वह सब उसी समय धनमित्रको दे दिया। इसके बाद धनमित्र यह सम्पत्ति ले बड़े भाईके पास आया। धनपाल तो पहलेसे ही वहां उपस्थित था। अब धनदेवने शीघ्र हो यात्राकी तैयारी करायी और सबसे विनय पूर्वक विदा ग्रहण सेवक और परिजनोंके साथ अपने नगरकी ओर प्रस्थान किया।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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