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________________ २१२ * पार्श्वनाथ-चरित्र समझ गये कि यह कोई बड़ा व्यापारी है और कहीं बाहरसे यहां आया है। शीघ्रही एक बड़े जौहरीने उसे अपने पास बुलाया और उसे आदर पूर्वक उच्च आसनपर बैठाकर कहा-“हे भद्र ! आप कहांसे आये और यहां किस जगह ठहरे हैं ? आपका आग. मन इस नगरमें किस उद्देशसे हुआ है ?" धनमित्रने कहा-“मैं व्यापारी हूं और व्यापारके निमित्त यहां आया हूँ।" जौहरीने कहा-"तब आप मेरे घर चलिये और कमसे कम आज मेरा आतिथ्य ग्रहण कीजिये।” यह कह वह जौहरी बड़े आदरके साथ धनमित्रको अपने घर ले गया और वहां स्नान भोजनादि कराया। भोजनादिसे निवृत्त हो दोनों जन फिर बातचीत करने लगे। जौहरीने पूछा-“सेठजी! आप किस वस्तुका व्यापार करना चाहते हैं ?" धनमित्रने कहा-"जिसमें लाभ दिखायी देगा, उसी वस्तुका व्यापार करूंगा।" जौहरीने पुनः पूछा-“व्यापारमें आप कितना धन लगाना चाहते हैं ?" धनमित्रने कहा-“मेरे पास पौने चार करोड़ मूल्यके तीन रत्न हैं। इन सबको व्यापारमें लगा देना चाहता हूँ।” जौहरीने कहा-"व्यापारमें आजकल कोई लाभ नहीं है। यदि आप माने तो मैं आपको एक सलाह दूं।" धनमित्रने कहा—“हां, खुशीसे कहिये।” जौहरीने कहा"आप व्यापार करनेका कष्ट न उठाकर अपने तीनों रत्न मुझे व्याज पर दे दीजिये। मैं उन्हें अपने पास रखूगा और आपको उसका व्याज दूंगा। इससे आपको अनायास बहुतसा धन मिलता रहेगा। इसमें सिवा लाभके हानिकी कोई संभावना भी नहीं
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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