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________________ * तृतीय सर्ग * तीन व्यापारियोंकी कथा । ********** २०६ इसी जम्बूद्वीप के ऐवत क्षेत्रमें अयोध्या नामक एक नगरी है। उसमें धन्य नामक एक व्यापारी रहता था। उसे धनवती नामक एक सुन्दरी स्त्री थी, उसके उदरसे धनदेव धनमित्र और धनपाल नामक तोन पुत्र उत्पन्न हुए थे। तीनों बड़े कार्यकुशल और अत्यन्त बुद्धिमान थे। जब यह तोनों लड़के जवान हुए, तब एक दिन धन्यने अपने मनमें विचार किया, कि इन तीन लड़कोंमें किसको गृहभार सौंपना ठीक होगा। इसकी परीक्षा करनी चाहिये । यह सोचकर उसने तीनों पुत्रोंको अपने पास बुलाकर कहा - " हे वत्सो ! मैं तुम सत्रोंको तीन-तीन रत्न देता हूँ । प्रत्येक रत्नका मूल्य सवा करोड़ रुपया हैं । तुम इन्हें लेकर विदेश जाओ और अपनी अपनी बुद्धिसे व्यापार करो । जब तुम्हें पत्र लिखकर वापस बुलाऊँ, तब तुरत यहां लौट आना ।" यह कह धन्यने तीनों पुत्रोंको पौने चार चार करोड़ मूल्यके तीन-तीन रत्न देकर शीघ्र प्रस्थान करनेकी आज्ञा दी। तीनोंने बिना उनके पिताकी बात मान ली । बड़ा पुत्र धनदेव जो बिलकुल आलस्य रहित था, वह विजय मुहूर्त में उसी दिन घर से निकल पड़ा। चलते समय उसने १३
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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