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________________ २०२ * पार्श्वनाथ-चरित्र * ज्ञान पढ़नेवाले या शानके कार्य करनेवालोंको उनके कार्यमें बाधा देनेसे शानावरणीय कर्मका बन्ध होता है। __धर्म कार्यमें अन्तराय करनेसे दर्शनावरणीय कर्म लगते हैं। कहा भी है कि सर्वज्ञ, गुरु और संघके प्रतिकूल होनेसे तोव और अनन्त संसार बढ़ानेवाला दर्शनावरणीय कर्मोंका बन्ध होता है। __ अनुकम्पा, गुरुभक्ति और क्षमादिकसे सुख (शाता) वेदनीय कर्म बन्धते हैं और इससे उलटा करनेपर (अशाता) वेदनीय कर्म बन्धते हैं। कहा भी है कि “जब मोहके उदयसे तीव अज्ञान उत्पन्न होता है, तब उसके प्रभावसे केवल ( दुःख ) वेदनीय कर्म बन्धता है और एकेन्द्रियत्व प्राप्त होता है। रागद्वेष, महामोह और तीव्र कषायसे तथा देश विरति और सर्वविरतिका प्रतिबन्ध करनेसे मोहनीय कर्म बंधता है। मन, वचन और कायाके वर्तावमें वक्र गति धारण करनेसे तथा अभिमान करनेसे अशुभ नाम कर्म बन्धता है और सरलता आदिसे शुभ नाम कर्मका बन्ध होता है। ___ गुणको धारण करनेसे, पर गुणको ग्रहण करनेसे, आठ मदोंका त्याग करनेसे, आगम श्रवणमें प्रेम रखनेसे और निरन्तर जिन भक्तिमें तत्पर रहनेसे उच्च गोत्रका बन्ध होता है। और इससे विपरीत आचरण करनेपर नीच गोत्रका बन्ध होता है। अज्ञान तप, अज्ञान कष्ट, अणुव्रत और महाव्रतसे देव आयु बंधती है। कहा भी है कि अकाम निर्जरासे, बाल तपस्यासे, अणवतसे, महाव्रतसे और सन्यग् दृष्टित्वसे देव आयु बँधती
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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