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* द्वितीय सर्ग *
शूकर उसे भक्षण करते, कभी वह महायंत्रोंमें पेरा जाता, कभी उसे तप्त सीसा पिलाया जाता, कभी लोहेके रथमें जोड़ा जाता, कमी शिला पर पटका जाता, कभी अग्निकुण्डमें डाला जाता और कभी तप्त धूलिमें सुलाया जाता। इस प्रकार क्षेत्र स्वभावजन्य दुःख और अन्योन्य जन्य महादुःखको भोग करता हुआ वह अपने दिन काटता था। उसे एक क्षणके लिये भो सुःख किंवा शान्ति प्राप्त न होती थी।