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________________ ૨૮૮ * पार्श्वनाथ-चरित्र * प्रार्थना करता हूँ। आठवें दिन आपकी जहां इच्छा हो, वहां आप जा सकती हैं।” कुबेरकी यह प्रार्थना स्वीकार कर लक्ष्मी उसी समय अन्तर्धान हो गयीं। इधर सवेरा होते ही कुबेरने जितना धन जमीनमें गड़ा था वह सब बाहर निकलवाया। साथ ही घरमें जितने वस्त्राभूषण और बर्तन आदि थे, वे भी सब एकत्र कर आंगनमें एक बड़ा सा ढेर लगवाया। इसके बाद उसने नगरमें घोषणा करायो, कि मैं अनाथ, दुःस्थित और दुःखित मनुष्योंको इच्छित दान देना चाहता हूँ। जिसे जिस वस्तुकी आवश्यकता हो, खुशीसे आकर ले जाय !” कुबेरकी यह घोषणा सुनते ही अनेक दीन दुःखित उसके पास आये और कुबेरने उन सबोंको इच्छित दान दे सन्तुष्ट किया। इसके बाद उसने सर्वक्षके मन्दिर में पूजा स्नान-महोत्सवादि कराये। सुसाधुओंको अन्न-वस्त्र दिये। अनेक ज्ञानोपकरणादि कराये और साधर्मि वात्सल्यादिक अनेक धर्मकृत्य किये। इस प्रकार सात दिनमें उसने अपना समस्त धन खर्च कर डाला और अपने पास केवल उतना ही धन रखा, जिससे कठिनाईके साथ उस दिन जीवन निर्वाह हो सके। सातवें दिन रात्रिको उसने एक पुराने तरुतपर शयन किया और शयन करते ही ऐसे खुर्राटे भरने लगा, मानो उसे घोर निद्रा आ गयी हो। कुछ ही देरमें वहां लक्ष्मीदेवी आ पहुंची और कुबेरको पुकार-पुकार कर जगाने लगी, किन्तु इससे कुबेरकी निद्रा भंग न हुई। देवीने यह देखकर उसे हाथसे हिलाया और कहा“कुबेर ! तू बोलता क्यों नहीं ?" कुबेर अब पागलकी तरह उठ
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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