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________________ * द्वितीय सर्ग * कल्याण उसके सम्मुख आता है, स्वर्ग सुख उसे वरण करता और मुक्ति उसकी वाञ्छना करती है। दान चाहे जिसको दिया जा सकता है किन्तु सुपात्र दान देनेसे दाताको शालिभद्रकी तरह सदा अभिष्ट वस्तुकी प्राप्ति होती है । पात्राभाव होनेपर स्वच्छन्दता पूर्वक जिसे इच्छा हो उसे देनेसे भी कुबेरकी तरह खोई हुई लक्ष्मी वापस मिलती है ।" यह सुनकर धनसार ने पूछा - "हे भगवन्! कुबेर कौन था और उसे लक्ष्मी किस तरह प्राप्त हुई थी ?” मुनीश्वरने कहा - "हे भद्र ! सुन, विशालपुर नामक एक विशाल नगरमें गुणाढ्य नामक एक राजा राज करता था । उस नगरमें कुबेर नामक एक धनी महाजन रहता था । उसके पास विपुल धन सम्पत्ति होनेके कारण वह सभी तरहके सुख उपभोग करता था। एक दिन रात्रिके समय जब वह अपने शयनागार में सो रहा था, तब दिन्यरूपा लक्ष्मी देवीने वहां आकर उसे जागाया । लक्ष्मी देवीको सम्मुख उपस्थित देख कुबेर तुरत हो उठ बैठा और हाथ जोड़कर पूछने लगा - " माता ! आप कौन हैं और इस समय यहां आनेका कष्ट क्यों उठाया है ?" लक्ष्मीने कहा“हे वत्स ! मैं लक्ष्मी हूं । भाग्यसे हो मेरा आना और ठहरना होता है । अब तेरा भाग्य क्षीण हो गया है, इसलिये मैं जा रही हूँ ।" कुबेर बड़ा ही चतुर और कार्यकुशल पुरुष था । लक्ष्मीके यह वचन सुनते ही उसने कहा- "माता ! यदि आप जाना ही चाहती हैं, तो मेरा बस ही क्या है, किन्तु मैं केवल सात दिन और रहनेकी
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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