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________________ * द्वितीय सगे* मन्त्री बनजारेके डेरेपर गया, किन्तु रानी मदनवल्लभाने उसकी ओर आंख उठाकर भो न देखा । मन्त्री उसी क्षण लौट आया और राजासे कहा-"राजन ! न तो वह आती है, न कुछ बोलती ही है।” मन्त्रीकी यह बात सुन राजा स्वयं उद्यान जानेके मिस बनजारेके डेरेपर गये। वहां एक कोनेमें मदनवल्लभा बैठी हुई दिखाई दी। वह बड़ी ही दीन मलीन और दुर्बल हो रही थी। सिरपर फटे पुराने कपड़े थे। आभूषण या सिंगार बढ़ानेवाली वस्तुओंका कहीं पता भी न था। उसे देखते ही राजाने पहचान लिया कि यही मेरी हृदयेश्वरी है। उसने रानीको सम्बोधित कर कहा-- “हे मदने ! हे देवि! क्या तू मुझे नहीं पहचानती ?" राजाको यह बात सुनते हो रानी खड़ी हो गयो और स्थिर इष्टिसे राजाके चरणोंको देखने लगी । बनजारा तो यह मामला देखते ही थर थर कांपने लगा। वह तुररा ही विनय अनुनय करता हुआ रानोके पैरों पर गिर पड़ा और नाना प्रकारसे गिड़गिड़ाकर क्षमा प्रार्थना करने लगा। रानीने सारा दोष अपने कर्मका समझ कर तुरत उसे क्षमा कर दिया और राजासे भो उसपर रोष न करनेकी प्रार्थना की। ___ राजाके पुत्र और पत्नी प्राप्तिका यह समाचार देखते ही देखते समूचे नगरमें फैल गया। राजाने तुरत रानीको सुन्दर वस्त्राभूषण धारण कराये और बड़े समारोहके साथ राजसी ठाटबाठसे उसे नगर प्रवेश कराया। इस प्रकार कीर्तिपाल और महीपालदोनों पुत्र और राजा रानी, सब लोग फिर एक बार एकत्र हुए।
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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