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________________ ·१७४ * पार्श्वनाथ चरित्र # कुमारों को एकान्तमें बुलाकर हृदयसे लगा लिया । कुमार भी अपने पिताको पहचानकर उसके चरणोंमें गिर पड़े। इसके बाद बड़े कुमारने नम्रता पूर्वक राजासे कहा -- “ पिताजी ! रात्रिके समय इस बनजारेके यहां पहरा देते समय हम दोनों भाई अपने 'बचपनकी बातें कर रहे थे। उसी समय बनजारेके डेरेसे एक स्त्री निकलकर हम लोगोंके पास आयी और हमें गले लगा-लगाकर, हे पुत्र ! हे पुत्र ! कहकर रोने लगी । हम नहीं जानते कि वह 'स्त्री कौन थी । बनजारेने शीघ्र हो उसे हम लोगोंसे अलग कर 'दिया। यही तो हमारा अपराध है । और इसीके लिये बनजारेने आपसे हमलोगोंकी शिकायत की है।" राजाने उस समय बनजारेको बुलाकर कहा - " सच कहो, तुम्हारे डेरेमें वह स्त्री कौन है, जो इन दोनोंके निकट रात्रिके समय विलाप करती थी ?” बनजारेने कहा - " राजन् ! मैं आपसे सत्य ही कहूंगा। मैं पृथ्वीपुरसे जबर्दस्ती उसे अपने साथ ले आया था । वह यद्यपि दासीको तरह मेरा गृहकार्य करती है किन्तु ऐसी सुशीला और सती है, कि मैं उसकी प्रशंसा नहीं कर सकता । पर पुरुषसे बोलना तो दूर रहा, वह उसकी ओर आंख उठाकर देखती भी नहीं है ।" बनजारेकी यह बात सुनकर राजाने मन्त्रीको बुलाकर कहा" इस बनजारेके डेरेमें एक स्त्री है, उसे समझा बुझाकर किसी तरह मेरे पास ले आइये । ध्यान रहे कि इसके लिये उसपर किसी तरहका बलप्रयोग न किया जाय।” राजाकी आज्ञा मिलते ही
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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