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________________ १७२ * पार्श्वनाथ चरित्र # नदीके इस पार और दूसरा नदीके उस पार था। दोनों बहुत समय तक वहीं खड़े खड़े रोते रहे । अन्तमें किसी यात्रीकी -सहायता से दूसरा कुमार भी उस पार पहुँचा । अब नोचे जमीन और ऊपर आकाशके सिवा उन्हें और कोई सहारा न था । दोनों भाइ इधर उधर भटकते और देश-देशकी ठोकरें खाते कुछ दिनोंके बाद इसी श्रीपुर नगरमें आ पहुँचे। यहां इन दोनोंने नगरके कोतवालके पास नौकरी कर ली । कुछ दिनोंके बाद दैवयोगसे वह सोमदेव नामक बनजारा जिसने रानीका अपहरण किया था, वह भी इसी नगरमें आ पहुँचा । उसने नगरके बाहर डेरा डाला, राजाको कई बहुमूल्य चीजें नजर कीं और अपनी रक्षाके लिये कुछ सिपाही भेजनेकी प्रार्थना की। राजाने समुचित प्रबन्ध करनेके लिये कोतवालको आज्ञा दे दी। कोतवालने उन दोनों राजकुमारोंको उपयुक्त समझ उन्हींको बनजारेके साथ कर दिया । अतएव दोनों कुमार वहां पहरा देने लगे । एक दिन रात्रिके समय दोनों भाई परस्पर बातें कर रहे थे छोटे भाईने बड़े भाई से माता-पिताका समाचार पूछते हुए और भी अनेक प्रश्न पूछे। इससे दोनोंकी पूर्वस्मृति जागृत हो उठी ओर वे दोनों अपने बचपनकी—उन सुखी दिनोंकी बातें करने लगे । जब राजकुमार होनेके कारण लोग उन्हें हाथोंपर रखते थे, तब उन्हें पानी मांगने पर दूध मिलता था और उनकी छोटी छोटी इच्छा को भी पूर्ण करनेके लिये दास दासियां हाथ
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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