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* द्वितीय सर्ग पहुँचते ही घोड़ेने हिनहिनाहट और हाथीने गर्जना की । कुम्भका जल राजाके शिरपर पड़ा, छत्र मस्तकपर स्थिर हो गया और चामर अपने आप दुलकर राजाको वायु करने लगे। इससे तुरत राजाकी नींद खुल गयी। उसने चारों ओरसे अपनेको राजपरिवार और राजसी ठाटबाटसे घिरा हुआ पाया। मन्त्री आदिने सारा हाल निवेदन कर, उससे राजोचित वस्त्राभूषण धारण करनेकी प्रार्थना की, जिसे राजने सहर्ष स्वीकार कर लिया। वस्त्राभूषण धारण करते ही हाथीने उसे अपनी सूंढसे उठाकर अपनी पीठपर बैठा लिया। इसके बाद बड़े समारोहके साथ उसकी सवारी निकाली गयी और सुमुहूर्त देखकर उसे राजसिंहासनपर अधिठित कराया गया। राजाको भी अब यह मालूम हो गया कि मेरे दुःखके दिन पूरे हो गये, इसलिये वह बड़े ही सुखसे वहां राज्य करने लगा। अपने शोल स्वभावके कारण शीघ्रही उसने प्रजा और मन्त्री प्रभृति पदाधिकारियोंका प्रेम सम्पादन कर लिया और वहां इस तरह राज्य करने लगा, मानो वह वहां चिरकालसे राज्य कर रहा हो। उसे एकान्त जीवन व्यतीत करते देख मन्त्रियोंने कई बार उसे व्याह कर लेनेके लिये समझाया, किन्तु राजने हँसकर उनकी बात टाल दी। वे बेचारे यह न जानते थे कि राजाके हृदयमें उसकी रानीको छोड़ और किसीके लिये स्थान ही न था। ___ राजा तो इस प्रकार किन्तु दोनों कुमारोंकी क्या अवस्था हुई ? जिस समय उनसे पिताका वियोग हुआ, उस समय एक