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________________ पार्श्वनाथ-चरित्र * किये हुए शुभाशुभ कर्मोंके फलको ही भोग करता है इसलिये इस संसारमें शुभ कर्मही करना चाहिये।" इस प्रकार राजाके हृदयमें ज्ञान और वैराग्यका उदय हुआ देखकर मन्त्रियोंने महाबलका अग्निसंस्कार कराया। उस दिनसे राजा चिन्तित, लज्जित और कीड़ा रहित हो महलमें ही रहने लगा। ___ एक बार नन्दन वनमें दो चारण श्रमण मुनिओंका आगमन हुआ। उनका आगमन समाचार सुन, मन्त्री राजाको उनके पास ले गये। राजाको देखते हो मुनीन्द्र उसके मनोभाव ताड़ गये। उन्होंने उसे धर्मोपदेश देते हुए कहा- "इस संसारमें जीव कर्मके ही कारण सुख दुःख भोग करता है । इसलिये सुखार्थों जीवोंको शुभ कर्मका संचय करना चाहिये । साथ ही चेतन स्वरूप आत्मको सुज्ञानके साथ जोड़कर अज्ञानसे उसकी रक्षा करनी चाहिये। मनुष्य बुद्धि, गुण, विद्या, लक्ष्मी, बल, पराक्रम,भक्ति किंवा किसी भो उपायसे अपनी आत्माको मृत्युसे नहीं बचा सकता। कहा भी है, कि जिस प्रकार अपने पतिको पुत्र-वत्सलता देखकर दुरा चारिणी स्त्रा हँसती है उसो तरह शरीरको रक्षा करते देख मृत्यु और धनकी रक्षा करते देख वसुन्धरा मनुष्यको हँसती है । दैव असंभवको संभव और संभवको असंभव बनाता है। कभी कभी वह ऐसी बातें कर दिखाता है, जिनकी मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकता। भवितव्यता प्राणियोंके साथ उसी तरह लगो रहती है, जिस तरह शरीरके साथ छाया। उसे पृथक करना, उसके प्रभावसे बचना कठिन हो नहीं, बल्कि असंभव है। यह
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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