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________________ * द्वितीय सर्ग* उत्साहकी नदी उमड़ने लगी। बाजोंका यह मधुर घोष सुनकर राजा चौंक पड़े। उस समय कुमारके वियोगके कारण चारों ओर शोकके घने बादल छाये हुए थे। एकाएक उदासीनताके वायुमण्डलमें बाजोंकी घोष सुन उन्हें आश्चर्य होना स्वाभाविक ही था । फलतः शीघ्र ही हग्विाहन राजाने अपने मन्त्रीसे इस सम्बन्धमें पूछताछ की ; किन्तु राजाकी भांति मन्त्री भी इस बातसे अनमिज्ञ था, अतएव वह भी कोई सन्तोषजनक उत्तर न दे सका। इतने ही में वनपालने उपस्थित होकर राजाको यह शुभ समाचार सुनाया। राजाको इससे इतना आनन्द हुआ, कि उन्होंने अपने शरीरके समस्त आभूषण वनपालकको इनाम दे दिये। क्षणभरमें विद्युत वेगसे यह आनन्द समाचार समूचे नगरमें फैल गया। जहां एक क्षण पूर्व शोकको घटा घिरी हुई थी, वहां अब प्रसन्नताका सूर्य चमकने लगा। सारा नगर बातकी बातमें ध्वजा पताकाओंसे सजा दिया गया और राजाको आज्ञासे मन्त्री प्रभृति अनेक गण्यमान्य सज्जन कुमारको लेनेके लिये सम्मुख पहुँचे । भीमकमारने मदालसाके साथ आकर माता-पिताको प्रणाम किया उस समय उन लोगोंका हृदय आनन्दसे पूरित हो उठा--सबकी आंखोंसे हर्षाश्रकी धारा बह चली। शीघ्र ही राजाने सभा विसर्जित की। सब लोग हँसी खुशी मनाते अपने-अपने घर गये। भोजनादिसे निवृत्त होनेके बाद भोमके अभिन्न हृदय मित्र मतिसागरसे राजाने सब हाल पूछा। मतिसागरने उन्हें आद्योपान्त सब हाल कह सुताया। भीमकी वीरताका समाचार सुन राजाको बड़ा ही
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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