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________________ ११८ * पार्श्वनाथ चरित्र # देकर अपनी पुत्रीको भी विदा करनेकी तैयारी की। सब तैयारी समाप्त हो जानेपर भीमकुमारने हेमरथके साथ आकाश मार्गसे अपने नगर की ओर प्रस्थान किया । एवं हाथी, घोड़े और नौकर चाकर प्रभृति भूमि मार्गसे वहाँके लिये रवाना हुए। यह लोग जिधर हीसे निकलते उधर ही हाथीके चित्कार और घोड़ोंकी हिनहिनाहट से दशो दिशायें पूरित हो जातीं। शीघ्रही कुमार बड़े ठाट-बाट के साथ सदलबल कमलपुरके समीप आ पहुँचे । वहाँ एक उद्यानमें उतरकर कुमार पहले जिनचैत्यमें गये और राक्षस तथा यक्षादिके साथ इस प्रकार स्तुति करने लगे :-- “मुनोन्द्रोंके आनन्द कन्दको बढ़ानेके लिये मेघ तुल्य और विकल्पकी कल्पना रहित ऐसे हे वीतराग ! आपको नमस्कार है ! विकसित मुखकमलवाले हे जिनेश ! आपका जो ध्यान करता है वह इस संसारमें उत्तम और अनन्त सुख प्राप्त करता है। हे परमेश्वर ! आपको देखते ही इस संसारके मार्गकी मरुभूमि नष्ट हो जाती है। हे भगवन् ! आप ही ज्योतिरूप हैं और आपही योगियोंके ध्येय हैं। आपहाने अष्टकमका विधात करने के लिये अष्टाङ्ग योग बतलाया है। जलमें, अग्निमें वनमें, शत्रुओंमें, सिंहादि पशुओंके बीचमें और रोगोंकी विपत्तिके समय आप ही हमारे अबलम्बन हैं- आप हो हमारे आश्रयस्थान हैं ।” इस प्रकार जगन्नाथकी स्तुति कर वहांसे पैदल चलता हुआ भीमकुमार अपने पिताको वन्दन करने चला । उस समय भेरी, मृदंग प्रभृति बाजे बजने लगे और चारों ओर आनन्दम् "
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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