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________________ -द्वितीय सर्ग* कापालिककी बात सुन, उस पुरुषने कहा-“मैं इस समय तीन लोक नाथ श्रोवीतराग देवकी शरण चाहता हूं। और अपने परम उपकारी, पुण्यवान, दयावान और जिनधर्म-परायण अपने उस प्रिय मित्रकी शरण चाहता हूं, जिसका नाम भीमकुमार है और जिसने मेरी बात न मान कर कापालिकके साथ प्रस्थान किया। अब मुझे और किसीका स्मरण नहीं करना है। तुझे जो कुछ अपना कर्तव्य करना हो, खुशीसे कर।" ___उस पुरुषकी यह बातें सुन भीमकुमार सजग हो गया । और शीघ्र हो अपने मित्रको पहचानते हुए वह तड़प कर एक ही छलांगमें कापालिकके सामने जा पहुंचा। उसे देखते ही कापालिक मन्त्री-पुत्रको छोड़ कर भीमसे आ भिड़ा। भीमने उसे तुरन्त जमीनपर पटक दिया, किन्तु ज्योंही वह उसके केश पकड़ कर उसकी छातीपर पाद प्रहार करने लगा, त्योंही देवी-प्रतीमा व्याकुल हो बोल उठी-“हे भीम ! इसे मत मार। यह कापालिक मेरा परम भक्त है। यह मस्तक रूपी कमलोंसे मेरी पूजा करता है। जब यह १०८ मस्तक मुझपर चढ़ा देगा, तब मेरो पूजा समाप्त होगी और उसी समय मैं इसे इच्छित वर दूंगी। हे वत्स! तेरी वीरता देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई है। इसलिये मैं तुझ वांछित वर दे सकती हूं। तेरी जो इच्छा हो वह मांग ले ?" भीमने प्रणाम कर कहा-“हे जगदम्बे ! यदित वास्तवमें मुझपर प्रसन्न है और मुझे इच्छित वर देना चाहती है, तो मैं यही मांगता हूं, कि तू तन, मन और ववनसे जीव हिंसा
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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