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________________ १०६ पार्श्वनाथ-चरित्र - गया था। उसे यह जाननेको बड़ी इच्छा हुई कि यह भुजा कहांसे आयी है और कहां जा रही है। यह जाननेके लिये वह उसी समय उस भुजापर सवार हो गया। अनेक नदी नाले और वन पर्वत पार करनेके बाद वह भुजा एक ऐसे स्थानमें जा पहुंची जहां हड्डियोंकी दोवालें, नर-मस्तकके कंगूरे, कंकालके द्वार, हाथी दाँतके तोरण, केश पार्शकी ध्वजायें, और व्याघ्र चर्मका वितान बना हुआ था। वहांको समस्त भूमि रक्त-रञ्जित हो रही थी। यह देख, भीमकुमारको ज्ञात हो गया कि वह एक कालिका भवन था। उस भवनमें मुण्डमाला और अस्त्र धारिणी क्रूराक्षी और महिषपर सवार एक कालिकाको मूर्ति थी। भीमने देखा कि इस मूर्तिके सम्मुख वही पापिष्ठ, दुष्ट, धृष्ट और पाखण्डी कापालिक अपने बायें हाथसे एक सुन्दर पुरुषको पकड़े खड़ा है। जिस भुजापर भीम आरूढ़ होकर आया था, वह इसी कापालिककी दाहिनी भुजा थी। भीमने एकाएक इस कापालिकके सम्मुख उपस्थित होना उचित न समझा। और उसने सोचा कि पहले कहीं छिप कर यह देखना चाहिये, कि कापालिक इस मनुष्यकी क्या गति करता है। निदान, वे भुजासे उतर कर वहीं मन्दिरके पीछे एक स्थानमें छिप रहे। ____ कापालिकको यह हाल कुछ भी मालूम न हो सका। उसने भुजासे वह खड्ग लेकर उस पुरुषसे कहा-“अब तू अपने इष्ठदेवका स्मरण कर ले, क्योंकि अब तु थोड़े ही क्षणोंका मेहमान हैं। मैं इसो खड्गसे तेरा शिरच्छेद कर देवीकी पूजा करूंगा।"
SR No.023182
Book TitleParshwanath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain Pt
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1929
Total Pages608
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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