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________________ प्रथम पवे ४३५ आदिनाथ-चरित्र काँप उठे और उनके शिखर गिर पड़नेलगे, पृथ्वीको धारण करने वाले कूर्मराजने अपने चरण और कण्ठका सङ्कोच करना शुरू किया; आकाश टूट पड़ने लगा और पृथ्वी फटती हुई सी मालूम पड़ने लगी। राजाके द्वारपालसे प्रेरित किये हुएके समान दोनों ओरके सैनिक रणवाद्योंसे प्रेरित होकर युद्धकेलिये तैयार हाने लगे। रणके उत्साहसे शरीर फूल उठनेके कारण उनके कवचों के बन्द तड़क उठे और वे नये नये कवच धारण करने लगे। कोई अत्यन्त प्रेमके मारे अपने घोड़ेको भी बख़्तर पहनाने लगा; क्योंकि बड़े बड़े वीर अपनी अपेक्षा भी अपने वाहनोंकी विशेष रक्षा करते हैं। कोई अपने घोड़े की परीक्षा करनेके लिये उसपर बैठकर उसे चलाकर देखने लगा ; क्योंकि दुःशिक्षिन और जड़ अश्व अपने सवारका शत्रुही होता है। बख्तर पहनकर हीसनेवाले घोड़ेकी कोई कोई वीर पूजा करने लगे ; क्योंकि युद्ध में जाते समय घोड़ेका होंसना युद्धमें जीत होनेका लक्षण है। कोई बिना बरूखरका घोड़ा मिलनेसे आप भी अपना बख्तर उतार कर रखने लगा; क्योंकि पराक्रमी पुरुषोंका रणमें यही पुरुषव्रत है। कोई अपने सारथिको ऐसी शिक्षा देने लगा, जिससे वह समुद्र में जैसे मछली चलती है, वैसे ही घोर रणमें सञ्चार करते हुए भी स्खलन नहीं पानेकी चतुराई सीख जाये। जैसे राह चलनेवाले राहखर्चके लिये पूरा सामान अपने पास रख लेते है, वैसेही बहुत दिनोंतक जारी रहनेवाली लड़ाईके लिहाज़से कितनेही वीरोंने अपने रथोंको हथियारोंसे भर लिया। काई दूसरेही अपनो पहचान करादेने
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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