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________________ आदिनाथ-चरित्र ४३४ प्रथम पर्व होने लगे। सबके सब अपने कृपाण, धनुष, तरकस, गदा और शक्ति आदि आयुधोंकी देवताकी तरह पूजा करने लगे। उत्साहसे नाचते हुए अपने चित्तके तालपर हो, वे वीर अपने आयुधोंके सामने ऊँचे स्वरसे बाजे बजाने लगे। इसके बाद अपने निर्मल यशके समान नवीन और सुगन्धित उबटनसे वे अपने शरीरका मार्जन करने लगे। मस्तक पर बँधे हुए काले वस्त्रके वीरपट्टका अनुकरण करनेवाली कस्तूरोकी विन्दी (टीका ) वे अपने-अपने ललाटमें लगाने लगे। दोनों ओरकी सेनाओंमें युद्धकथा जारी रहने और शस्त्र पूजाके लिये जागरण करनेके कारण वीरोंको नींद नहीं आयी। मानों वह उनसे डर गयी। प्रातःकाल होने वाले युद्धके लिये उत्साहसे भरे हुए दोनों ओरके वीर सैनिकोंको तीन पहरोंकी वह रात सौ पहरोंवाली मालूम पड़ी और उन्होंने बड़ी मुश्किलसे वह रात काटी। सवेरा होतेही दोनों ऋषभपुत्रोंकी युद्ध-क्रीड़ा देखनेके कौतूहलसे ही मानों सूर्य उदयाचलकी चोटी पर चढ़ आये। उसी समय एकाएक मन्दराचलसे क्षुब्ध समुद्र-जलकी भाँति, प्रलयकालके पुष्करावर्त्त-मेघकी भांति और वज्रसे ताड़ित पर्वतकी भाँति दोनों सेनाओंमें मारू बाजे बज उठे। उन रणवाद्योंके उस गूंजते हुए नादसे दिग्गजोंने तत्काल कान ऊँचे किये और डर गये-जलमें रहनेवाले जीव भयसे भ्रान्त होने लगे। समुद्र खलबला उठा, क्रूर प्राणी भी चारों ओरसे दौड़ते भागते हुए गुफाओंमें प्रवेश करने लगे, बड़े-बड़े साँप बिलोंमें घुसने लगे, पर्वत
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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