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________________ प्रथम पर्व .४३३ आदिनाथ-चरित्र है। पर ठीक जानना, उन लोगों में बाहुबलीके पैदल सिपाहियोंकी बराबरी करनेवाला एक भी नहीं था। हवा जैसे रुईको उड़ा ले जाती है, वैसेही इस बाहुबलीका जेठा बेटा सोमयशा सारी सेना को दसों दिशाओं में उड़ाकर फेंक देनेको समर्थ है। उमरमें छोटा और पराक्रममें बड़ा उसका सिंहरथ नामका छोटा भाई शत्रुओंकी सेनांके लिये दावानलके समान है। अधिक क्या कहूँ ? उसके अन्य पुत्रों और पौत्रोंमें भी एक-एक ऐसा है, जो अक्षौहिणी सेनामें मल्लके समान और यमराजके सदृश भय उत्पन्न कर सकता है। उसके स्वामिभक्त सेवक भी, जो ठीक उसके प्रतिबिम्ब मालम पड़ते हैं, बलमें उसकी समानता कर सकते हैं। औरोंकी सेनामें जैसे एकही महाबलवान् नायक होता है, वैसे उस की सेनामें सबके सब पराक्रमी हैं। महाबाहु बाहुबली तो दूर रहे, उसका एक-एक सेनाव्यूह रणमें वज्रकी तरह अभेद्य है। इसलिये जैसे वर्षाऋतुमें मेघके साथ-साथ पुरवैया हवा चलती है, वैसे ही तुम भी युद्धके लिये यात्रा करते हुए सुषेणके पीछे-पीछे चले जाओ।” ____अपने स्वामीकी अमृतसमान वाणीसे मानों उनके रोम-रोम भर गये हों, इस प्रकार उनके शरीरमें पुलकावली छा गयी। मानों प्रतिवीरों ( शत्रुओं ) की जयलक्ष्मीको स्वयंवर-मण्डपमें धरने जाते हों, इसी तरह महाराजके द्वारा विसर्जन किये हुए वे वीर अपने-अपने डेरोंमें चले गये। दोनों ऋषभपुत्रोंकी प्रसादरूपी समुद्रको तरनेकी इच्छासे दोनों ओरके वीरश्रेष्ठ युद्ध के लिये तैयार २८
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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