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आदिनाथ- चरित्र.
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प्रथम पर्व
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वाले भाटचारणोंक से अपने गुण बतलानेवाले ध्वजस्तम्भोंको दृढ़ करने लगे । कोई अपने मज़बूत धुरेवाले रथमें, शत्रुसैन्यरूपी समुद्रमें मार्ग पैदा करनेके लिये, जलकान्तरत्नके समान अव जोतने लगे। कोई अपने सारथिको मज़बूत बख़्तर देने लगा, क्योंकि अच्छे घोड़े जुते रहनेपर भी बिना सारथि रथ निकम्मा हो जाता है । कोई मज़बूत लाहेके कंकणकी श्रेणोका सम्पर्क होनेसे कठार बने हुए हाथियोंके दाँतको अपनी भुजाकी तरह पूजने लगे। कोई प्राप्त होनेवाली जयलक्ष्मी के वासगृहके समान पताकाओं के समूह वाली अम्बारोको हाथी के ऊपर रखने लगा । कोई-कोई वीर शकुन समझ कर हाथीके गण्डस्थलसे चूते हए मदका कस्तूरीके समान तिलक करने लगे । कोई दूसरे हाथीकी मदगन्धसे भरी हुई वायुको भो सहन न करनेवाले मनकी तरह मतवाले हाथीपर, सवार होने लगा, सारे महावत रणोत्सवके शृङ्गार वस्त्र के समान सोनेके कड़े हाथियोंको पहिनाने और उनकी सूंड़ोंसे भी ऊँची नालवाले नील कमलकी लीलाको धारण करनेवाले लोहे के मुद्गर भी उनसे उठवाने लगे । कितहीने महावत यमराजके दाँतके समान हाथियोंके दाँतके ऊपर काले लोहेकी तीखी चूड़ियाँ पहनाने लगे ।
इसी समय राजाके अधिकारियोंकी ओरसे आज्ञा जारी हुई, कि सैन्यके पीछे-पीछे अस्त्रोंसे लदे हुए ऊँटों और गाड़ियोंको शीघ्रही ले जाओ, नहीं तो हस्तलाघवतावाले वीर सिपाहियोंको हथियारों का टोटा हो जायगा ; बख्तरोंसे लदे हुए ऊँट भी ले