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________________ प्रथम पर्व ४२५ आदिनाथ-चरित्र भी यह नहीं जानती–कि उनके सिवा इस जगत्में दूसरा भी कोई राजा हैं। क्या कर देनेवाले, क्या बेगार देनेवाले, देशके सभी लोग सेबककी तरह उनकी भलाईके लिये प्राण देनेकी इच्छा रखते हैं। सिंहोंकी तरह वनचर और गिरिचर वीर भी उनके वसमें हैं और उनकी मान-सिद्धि करनेकी इच्छा रखते हैं। हे स्वामी ! अधिक क्या कहूँ, वे महावीर दर्शनकी उत्कण्ठासे नहीं, बल्कि युद्धकी लालसासे आपको तुरत देखनेकी इच्छा कर रहे हैं। अब आपको जैसा रुचे. वैसा कीजिये, क्योंकि दूत मन्त्री नहीं, केवल मात्र संवाद सुनानेवाला ही हैं। उसकी ऐसी बातें सुन, नाटकाचार्यं भरतकी तरह एकही साथ विस्मय, कोप, क्षमा और हर्षका नाट्य करते हूए भरतने कहा,–“सुर, असुर और नरोंमें इस बाहुबलीकी बराबरीका कोई नहीं है, इस बातका तो मैं लड़कपन हीमें स्वयं अनुभव कर चुका हूँ। तीनों जगतके स्वामीका पुत्र और मेरा छोटा भाई बाहुबली अपने आगे तीनों लोकको तृण की तरह समझे, यह उसकी झूठी प्रशंसा नहीं बल्कि सच्ची बात है। ऐसा छोटा भाई पाकर मैं भी प्रशंसाके योग्य हो गया हू ; क्योंकि यदि अपना एक हाथ छोटा और दूसरा बड़ा हो, तो इससे मनुष्यको शोभा नहीं होती। यदि सिंह बन्धनको सहन करले और अष्टापद वशमें हो जाये, तो बाहुबली भी वशमें लाया जा सकता है। और यदि यह वशमें हो जाये, फिर न्यूनही क्या रह जाये ? मैं उसकी यह दुर्विनीतता सहन करूँगा। लोग इससे मुझे कमज़ोर भलेही
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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