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________________ प्रथम पर्व ३८५ आदिनाथ-चरित्र हाथ जोड़े और "आपकी जय हो, आप विजयी हों" कहकर चक्रवर्ती को बधाने लगे। इसके बाद सेनापति और सेठ प्रभृति जलसे अभिषेक करके उस जलके जैसे उज्ज्वल वाक्योंसे उनकी स्तुति करने लगे । फिर उन्होंने पवित्र रोंएँ वाले कोमल गंधharat वस्त्र, माणिक्यकी तरह, उनका शरीर पोंछ कर साफ किया तथा गेरू जिस तरह सोनेकी कान्तिको पोषण करता है, उसकी कान्तिको बढ़ाता है, उस तरह शरीर की कान्तिको पोषण करनेवाले गोशार्ष चन्दनका लेप महाराजने अंगमें किया । इन्द्रने जो मुकुट ऋषभ स्वामीको दिया था, देवताओंने वही मुकुट अभिषिक्त और राजाओंमें श्रेष्ठ चक्रवर्त्तीके सिर पर रखा । उनके मुख-चन्द्र के पास रहने वाले चित्रा और स्वाती नक्षत्र जैसे रत्नों के कुण्डल उनके दोनों कानोंमें पहनाये 1 जिसमें धागा नहीं दीखता, जो मानों हारके रूपमें ही पैदा हुआ हो, ऐसा सीपके मोतियोंका हार उनके गलेमें पहनाया । मानों सब अलङ्कारोंका हार रूप राजाका युवराज हो ऐसा एक सुन्दर अर्द्धहार उनके उरस्थल या छाती पर पहनाया, मानों कान्तिमान अभ्रकके सम्पुट हों ऐसे उज्ज्वल कान्तिसे शोभने वाले देवदूष्य वस्त्र महाराजको पहनाये । और मानों लक्ष्मीके उरस्थल रूपी मन्दिरको कान्तिमय किले जैसी एक सुन्दर फूलों की माला उनके कण्ठमें पहनाई। इस प्रकार कल्पवृक्ष के जैसे अमूल्य कपड़े और माणिकके गहने पहन कर महाराजाने स्वर्गखण्डकी तरह उस मण्डपको सुशोभित किया। फिर समस्त पुरुषोंमें I २५
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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