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आदिनाथ चरित्र
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प्रथम पर्व
अन्तःपुर और परिवारसे घिर कर हाथी पर बैठे और उस मण्डपमें गये। फिर अन्तःपुर और हज़ारों नाटकोंके साथ उन्होंने उच्च रूपसे बनाये हुए अभिषेक-मण्डपमें प्रवेश किया । वहाँ स्नान-पीठमें सिंहासन पर चढ़े, उस समय हाथीके पर्वतशिखर पर चढ़नेका सा दृश्य हुआ। मानों इन्द्रकी प्रीतिके लिये हो, इस तरह वे पूरब दिशाकी और मुह करके रत्नसिंहासन पर बैठे। थोड़ेही हों इस तरह बत्तीस हज़ार राजा लोग उत्तर ओरकी सीढ़ियोंसे स्नान-पीठ पर चढ़े और चक्रवर्तीके पास भद्रासनोंपर हाथ जोड़कर उसी तरह बैठे, जिस तरह देवता इन्दके सामने हाथ जोड़कर बैठते हैं। सेनापति, गृहपति, वर्द्धकि, पुरोहित और सेठ-साहूकार प्रभृति दक्खनकी सीढ़ियोंसे स्नान-पीठ पर चढ़े। मानों चक्रवर्तीसे प्रार्थना करनेकी इच्छा रखते हों, इस तरह अपने योग्य आसनों पर हाथ जोड़कर बैठ गये। पीछे आदिदेवका अभिषेक करने के लिये इन्द्र आये हों उस तरह इस नग्देवका अभिषेक करनेके लिये उनके आभियोगिक, देव निकट आये। जलपूर्ण होनेसे मेघ जैसे, मानों चकवा पक्षी हो इस तरह मुख भाग पर कमल वाले और भीतरसे जल गिरते लमय बाजेकी सी आवाज़ करने वाले स्वाभाविक और वैक्रियक रत्न कलशोंसे वे सब महाराजका अभिषेक करने लगे। मानों अपने ही नेत्र हों ऐसे जल से भरे हुए कलशोंसे बत्तीस हज़ार राजाओंने, शुभ मुहूर्तमें उनका अभिषेक किया और अपने सिरपर कमल कोषकी तरह