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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व आकृति थी; त्रिलोकीके माणिक्योंके तेजपुञ्ज जैसी उसकी कान्ति थी,कृतज्ञ सेवकोंसे घिरी हुई की तरह वह यौवनावस्था तथा नित्य स्थिर रहने वाले शोभायमान केशों और नाखूनोंसे अतीव सुन्दरी मालूम होती थी, दिव्य औषधिकी तरह वह समस्त रोगोंको शान्त करने वाली थी और दिव्य जलकी तरह वह इच्छानुरूप शीत और उष्ण स्पर्श वाली थी। वह तीन ठौरसे श्याम, तीन ठौरसे सफेद और तीन ठोरसे ताम्र, तीन ठौरसे उन्नत, तीन ठौर से गम्भीर, तीन ठौरसे विस्तीर्ण, तीन ठौरसे दीर्घ और तीन ठौरसे कश थी। अपने केश कलापसे वह मयूरके कलापको जीतती थी और ललाटसे अष्टमीके चन्द्रमाका पराभव करती थी। रति और प्रीति की क्रीड़ा वापिका सी उसकी सुन्दर दृष्टि थी। ललाटके लावण्य-जल की धारा सी उसकी दीर्घ और मनोहर नाक थी। नवीन दर्पके जैसे उसके मनोहर गाल थे। दो झूलोंके जैसे कन्धों तक पहुँचने वाले उसके दोनों कान थे। एक साथ पैदा हुए से विम्बोफल सद्श उसके दोनों होउथे। हीरे की कनियोंकी शोभा को पराभव करने वाले उसके दांत थे। पेटकी तरह उसके कण्ठमें तीन रेखायें थी। कमलनाल जैसी सरल और विषके समान कोमल उसकी भुजायें थी। कामदेव के कल्याण कलश जैसे दो स्तन थे। स्तनोंने उदरकी सारी पुष्टता हरली थी, इसलिये उसका उदर कृश और कोमल था। नदीके भँवरोंके समान उसका नाभिमण्डल था। नाभि रूपी पापिकाके किनारेके ऊपरकी दूर्वावली-दूब हो-ऐसी उसकी
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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