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________________ प्रथम पर्व ३६६ आदिनाथ- चरित्र रोमावली थी । कामदेवकी शय्या के जैसे उसके विशाल नितम्ब थे 1 हिंडोलेके सुन्दर खम्भोंके जैसे उसके दोनों उरूदण्ड थे । हिरनीकी जाँघों का तिरस्कार करने वाली उसकी दोनों जायें थीं । मोथोंकी तरह उसके चरण भी कमलोंका तिरस्कार करने वाले थे। हाथों और पावोंकी अंगुलियोंसे वह पल्लवित लता सी दीखती थी । प्रकाशमान नखरूपी रत्नोंसे वह रत्नाचलकी तरी सी मालूम होती थी, विशाल, स्वच्छ, कोमल और सुन्दर वस्त्रोंसे वह मन्द मन्द वायु से तरंगित सरिताके समान दीखती थी । स्वच्छ, कान्तिसे तरङ्गित सुन्दर सुन्दर अवयवोंसे वह अपने सोने और जवाहिरातके गहनोंकी खूबसूरती को बढ़ाती थी। छाया की तरह उसके पीछे पीछे छत्रधारिणी स्त्रियाँ उसकी सेवा के लिये रहती थीं। दो हंसोंके बीचमें कमल जिस तरह मनोहर मालूम होता है, उसी तरह दो चंवरोंके अगल बगल फिरने से वह मनोमुग्धकर जान पड़ती थी । अप्सराओंसे लक्ष्मी की तरह और नदियोंसे जान्हवी - गंगाकी तरह वह सुन्दरी बाला, समान उम्र वाली हज़ारों सखियोंसे घिरी रहती थी 1 नमि राजाने भी महामूल्यवान रत्न चक्रवर्त्तीको भेंट किये क्योंकि स्वामी घर आवे तब महात्माओंको क्या आदेय है ? इसके बाद • महाराज भरतसे बिदा होकर नमि, विनमि अपने राज्यमें आये और अपने पुत्रोंके पुत्रोंको राज्य सौंप, विरक्त हो, ऋषभदेव भगवान के चरण कमल में जा, व्रत ग्रहण किया । I २४
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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