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________________ आदिनाथ चरित्र १० प्रथम पर्व खुलासा- जिस तरह वैद्य को देखते ही रोगी को आनन्द होता है, रोगशत्रु से पीछा छूट जाने की आशा से खुशी होती है; उसी तरह संसार रूपी रोग से पीड़ित प्राणियों को भगवान् श्रेयांसनाथ के दर्शनों से प्रसन्नता होती है, उनको पाप-ताप के भय और भयङ्कर चिन्ताग्नि से रिहाई मिलती है, उनके मुये हुए हृदय-कमल खिल उठते हैं; क्योंकि भगवान् मोक्षलक्ष्मी रमण या मोक्ष के स्वामी हैं । वे दुखिया प्राणियों का दुःख गर्त्त से उद्धार कर सकते हैं, उन्हें जन्म-मरण के घोर दुःखों से छुड़ा सकते हैं, उन्हें परम पद या मोक्ष दे सकते हैं । ग्रन्थकार कहता है, ऐसे ही परमानन्द के दाता और मोक्ष के स्वामी भगवान्, श्रेयांसनाथ, आप लोगों का कल्याण करे ! विश्वोपकार की भूततीर्थ कृत्कर्मनिर्मितिः । सुरासुरनरैः पूज्यो वासुपूज्यः पुनातु वः ॥ १४ ॥ जिन्होंने जगत् के उपकार करनेवाले तीर्थङ्कर नामम-कर्मको बाँधा है; जो सुर, असुर और मनुष्यों द्वारा पूजने योग्य हैं; वे वासुपूज्य भगवान् तुम्हें पवित्र करें ! विमलः स्वामिनो वाचः कतकक्षोदसोदराः । जयन्ति त्रिजगतो जलनैर्मल्य हेतवः ॥ १५॥ * मोक्ष = जन्म से रहित । जिस की मोक्ष हो जाती है, उसे फिर जन्म लेना नहीं पड़ता । जिस का जन्म नहीं होता, उस की मृत्यु भी नहीं हो सकती । जन्म-मरण से पीछा छूट जाने को ही मोक्ष होना कहते हैं ।
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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