SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र सत्वानां परमानन्दकन्दाद्भेदनवाम्बुदः । स्याद्वादामृतनिष्यन्दी शीतलः पातुवोजिनः ॥१२॥ Ε जो प्राणियों के परमानन्द रूपी अङ्कुर को प्रकट करनेके लिए नवीन मेघ के समान हैं और जो स्याद्वाद रूपी अमृत की वर्षा करने वाले हैं, वेही भगवान् श्री शीतलनाथजी तुम्हारी रक्षा करें ! खुलासा- जिस तरह नवीन मेघके बरसनेसे अङ्कुर प्रकट होते हैं; उसी तरह भगवान् श्री शीतलनाथजी के उपदेशामृत की वर्षा करने से संसारी प्राणियों के हृदयों में परमानन्द या परम सुखका अङ्कुर प्रकट होता है । ग्रन्थकार कहता है, जिन भगवान् के उपदेशों से प्राणियों के हृदय में परमानन्द का उदय होता है, वे ही भगवान् आप लोगों को सब प्रकार के दुःख, क्लेश, कष्ट और आपदाओं से बचावें; कुपथ से हटा कर सुपथ पर लावें और पापताप के गहों में गिरने से रोकें । भवरोगार्त्तजन्तुनामगदंकारदशर्न: । निःश्रेयसश्रीरमणः श्रेयांसः श्रेयसेऽस्तु वः॥ १३॥ जिस तरह चिकित्सक या वैद्य का दर्शन रोगियों को आनन्द देने वाला है; उसी तरह संसार के दुःख और क्लेशों से दुखी प्राणियों को जिन भगवान् श्रेयांसनाथका दर्शन आनन्द देने वाला है, और जो मोक्ष-लक्ष्मी के स्वामी हैं, वे ही श्रेयांसनाथ स्वामी तुम्हारा कल्याण करें !
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy