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________________ प्रथम पव प्रथम पव ११ ।। आदिनाथ-चरित्र जिस तरह निर्मली का चूर्ण जल में घोल देने से जल को निर्मल या साफ कर देता है ; उसी तरह भगवान विमलनाथ की वाणी तीनों जगत् के प्राणियों के अन्त:करणों का मैल दूर करके उन्हें पवित्र करती है । आप की अलौकिक वाणी की सवत्र जय हो रही है ! खुलासा-निर्मली एक प्रकारकी वनस्पति होती है । उसको पीसकर गदले से गदले पानी में घोल देने से जल बिल्लौरी शीशे की तरह साफ होजाता है। ग्रन्थकार कहता है, भगवान् विमलनाथ के उपदेश या वचन भी निर्मली की तरह ही तीनों लोकों के प्राणियों के मैले अन्तःकरणों को शुद्ध और साफ कर देते हैं ; यानी उन के अन्तः करणों पर जो काम क्रोध, लोभ, मोह और ई-द्व प प्रभृति का मैल जमा रहता है, वह भगवान के उपदेशों से दूर हो जाता है, और अन्तः करण निर्मल पाइने की तरह स्वच्छ और साफ हो जाते हैं। भगवान् की ऐसी लोकोत्तर वाणी की सर्वत्र जय जयकार हो रही है । संसार उन के उपदेशों को शृद्धा और भक्ति से सुनता और उन पर अमल करता है। स्वयंभूरमणस्पर्डीकरुणारसवारिणा । अनंत जिदनंतां वः प्रयच्छतु सुखश्रियम् ॥१६॥ जिस तरह स्वयं भूरमण नामक समुद्र में अनन्त जलराशि है ; उसी तरह श्री अनन्तनाथ स्वामी में अनन्त–अपार दया है । वही अनन्तनाथ प्रभु अपनी अपार दया से तुम्हें अनन्त सुख-सम्पत्ति दें ! खुलासा-श्री अनन्तनाथ स्वामी स्वयंभूरमण-समुद्र से स्पर्धा करते हैं। जिस तरह उस समन्दर में अनन्त जल भरा है, उसी तरह भगवान में
SR No.023180
Book TitleAdinath Charitra
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Pt
Publication Year1924
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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