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________________ कल्पान्तर्वाच्यः ] उपसर्गाः सक्को य देवराया सभागओ भणइ हरिसिओ वयणं । तिणि वि लोग समत्था (न) जिण वीर-मणं चलेउं जे ॥ ५२६ ॥ सामाणिय संगमओ देवो सक्कस्स सो अमरिसेणं । अह आगओ तरंतो मिच्छदिट्ठी पडिनिविट्ठो ॥ ५३० ॥ धूली पिविलियाओ उद्दंसा चेव तह य उण्हाला । विच्छू सप्पा नउला मूसगा चेव अट्ठमया ॥ ५३१ ॥ हत्थी हत्थिणगाओ पिसायए घोररूव – वग्घे य। थेरो थेरी य सुओ आगच्छइ पक्कणो तह य ॥ ५३२ ॥ खरवाय कलंकलिया कालचक्कं तहेव य । पाभाइय उवसग्गो वीसइ मोहोइ अणुलोमो ॥ ५३३ ॥ सामाणिय-देवड्डुिं देवो दाएइ सो विमाणगओ । भणइ वरेहि महरिसि ! निप्पत्ति सग्ग-मुक्खाणं ।। ५३४ ॥ देवड्ढि दंसित्ता वरं वरेहि त्ति भणइ जं कज्जं । सामी अक्खुद्ध-मणसो चिट्ठइ सुहज्झाण-संलीणो ।। ५३५ ।। एवं एग-निसा वीसुवस्सग्गा कया य जह तेण । असणा-करणा कयत्थिओ तह य छम्मासं ॥ ५३६ ॥ सो संगमओ भग्गो सग्गं जा जाइ पिच्छइ सक्को । जा जंपइ दुट्ठमेयं दद्धुं पि न जुज्जए अम्हं ।। ५३७ ॥ वज्रेणं हंतूणं वामपाए निवासिओ सिग्घं । सक्कप्पियग्गमहिसी सहिओ चिट्ठइ मेरुंमि ॥ ५३८ ॥ छम्माणिगोवकड - खिल-पवेसणं मज्झिमाइ- पावाए । खरओ विज्जो सिद्धत्थ-वाणिओ नीहरावेइ ॥ ५३६ ॥ छम्माणि-गाम-बाहिं गोवो कण्णे य कडखिले खिवइ सो पुव्व-भवे तिविट्ठ-सिज्जापालो कण्ण- तपू ।। ५४० ॥ पावाए खरविज्जो सिद्धत्थ वणिओ य तेहिं मिलिएहिं । संडासगेहिं मुत्ता करिसिए सामिणा राडी || ५४१ ॥ सत्तमिए सो गोवो खर - सिद्धत्था य देवलोगंमि । उवस्सग्गेसु जहण्णो दुस्सहकडपूयणा सीयं ॥ ५४२ ॥ [ ४७ सङ्गमकः ॥
SR No.023172
Book TitleKalpantarvcahya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPradyumnasuri
PublisherSharadaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1997
Total Pages132
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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