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तृतीयौषधज्ञा
वाहिमवणेइ भावे कुणइ अभावे तयं तु पढमं ति । बियमवणेइ न कुणइ तइयं तु रसायणं होइ ॥ ३६ ॥ एवं एसो कप्पो दोसाभावेऽवि किजमाणो य । सुंदरभावाओ खलु चारित्त - रसायणं होइ ॥ ३७॥ एवं कप्प-विभागो तइओसह - नायओ मुणेयव्वो । भावत्थ- जुओ इत्थ उ सव्वत्थ वि कारणं एवं ॥ ३८ ॥ जहणाऽवि य रण्णा ससुयंस्साणागयंमि रोगंमि । तप्पडियार - निमित्तं समागया तिण्णि विजवरा ॥ ३६ ॥
तत्थेगो भइ ओसहमत्थि ममं संतो वाहिमवणेइ । कुणइ अभावे तं पुण तेणालं सुत्तसीहेणं ॥ ४० ॥ बीओ भणइ ममोसहमवणेइ संतयं; न य नवं कुणइ । तइओ भणइ ममोसहमत्थि परम- रसायण - सरिच्छं ॥ ४१ ॥ संतं फेडइ वाहिं असइ पुणो कुणइ रूव- लावण्णं । तइओ ओसह - कप्पो पुण एसो कप्पो मुणेयव्वो ॥ ४२ ॥ पुरिमाण दुव्विसुज्झो चरिमाणं दुरणुपालणओ । कप्पो मज्झिमगाणं सुविसुज्झो सुहणुपालो य ॥ ४३ ॥ उज्जु-जडा पढमा खलु नडाइ - नायाओ हुंति नायव्वा । वक्क - जडा पुण चरिमा उज्जु-पण्णा मज्झिमा भणिया ॥ ४४ ॥ रिउ-ज़ड साहू पिच्छिय नच्चंतं नडयं महापहंमि । गुरुणा पुट्ठे सच्चं कहिए मिच्छुक्कडं देइ ॥ ४५ ॥
बीयं नायं कुंकुण वाणियस्स तेण वुडवत्थाए । गहिया दिक्खा इरि-उस्सग्ग-ठिओ पुच्छिओ गुरुणा ॥ ४६ ॥ किं चिरमुस्सग्ग-ठिओ भणइ मए चिंतिया दया नाह ! । कह तो सो भणइ इमं जइयाहं आसि गिहवासे ॥ ४७ ॥ वासारंभे तइआ रुक्खुम्मुलण-तणाइ-जालणयं । किच्चा सालि-प्पमुहाण धण्णाणं वावणं कुव्वे ॥ ४८ ॥ पच्छा पभूय-धणे निप्पण्णे सव्वया सुही वुच्छं । पुत्ता य मे वराया न संति कुसला य तक्कने ॥ ४६ ॥
[ कल्पान्तर्वाच्यः