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________________ त्रैवर्णिकाचार। ३५५ - मुनिको देखकर भक्त श्रावक भक्तिपूर्वक उन्हें पडगाहे। बाद प्रामुक जलसे उनके चरणोंका प्रक्षालन कर उनकी पूजा करे । भावार्थ-नवधा भाक्ति करे ॥ ७२॥ . . षट्चत्वारिंशदोषैश्व रहितं पासुकं वरम् । गृहीयानोजनं गात्रधारणं तपसेऽपि च ॥ ७३ ॥ छयालीस दोषोंसे रहित प्रासुक और अच्छा आहार, शरीर स्थिति और तपश्चरणके निमित्त ग्रहण करे ॥ ७३ ॥ दोषान् संक्षेपतो वक्ष्ये यथाम्नार्य गुरोमुखात् । दाता स्वर्ग बजेद्रोक्ता शिवसौख्याभिलाषुकः ।।७४ ॥ गुरुके मुखसे सने हुए दोषोंको संक्षेपमें शास्त्रानुकूल कहता हूं। जिन्हें समझकर मोक्षसुखके चाहनेवाला भोक्ता और दाता स्वर्ग और क्रमसे मोक्षको जाते हैं ॥ ७४ ॥ - छयालीस दोषोंके नाम। उद्देशं साधिकं पूति मिश्रं पाभृतिकं बलिम् । न्यस्तं प्रादुष्कृतं क्रीतं मामित्यं परिवर्तनम् ॥ ७५ ॥ निषिद्धाभिहितोद्भिमा आच्छाद्यं मालरोहणम् ।। धात्रीभृत्यनिमित्तं च वन्याजीवनकं तथा ॥ ७६ ॥ क्रोधो लोभः स्तुतिपूर्व स्तुतिपश्चाच्च वैद्यकम् । .. मानं माया तथा विद्या मंत्रंचूर्ण वशीकरम् ॥ ७७॥ शङ्कापिहितसंक्षिप्ता निक्षिप्तस्राविको तथा । .. परिणतसाधारणदायकलिप्तमिश्रकाः ॥ ७८ ॥ . : अङ्गारधूमसंयोज्या अप्रमाणास्तथा त्विमे । षट्चत्वारिंशदोषास्तु ोषणाशुद्धिघातकाः ॥ ७९ ॥ १ उद्देश, २ साधिक, ३ पूति, ४ मिश्र, ५ प्राभृतिक, ६ बलि, ७ न्यस्त, ८ प्रादुष्कृत, ९ क्रीत, १० प्रामित्य, ११ परिवर्तन, १२ निषिद्ध, १३ अभिहित, १४ उद्भिन्न, १५ आछाद्य, १६,मालारोहण, १७ धात्री, १८ भृत्य, १९ निमित्त, २० वनीपक, २१ जीवनक, २२ क्रोध, २३ लोभ, २४ पूर्वस्तुति, २५ पश्चात्स्तुति, २६ वैद्यक, २७ मान, २८ माया, २९ विद्या, ३• मंत्र ३१ चूर्ण, ३२ वशीकरण, ३३ शंका, ३४ पिहित, ३५ संक्षिप्त, ३६ निक्षिप्त, ३७ स्राविक, ३८ अपरिणत, ३९ साधारण, ४० दायक, ४१ लिप्त, ४२ मिश्रक, ४३ अंगार, ४४ धूम, ४५ संयोज्य और ४६ अप्रमाण ये छयालीस दोष हैं जो एषणाशुद्धिके घातक हैं ॥ ७५-७९॥ औदशिक दोष । नागादिदेवपापण्डिदानाद्यर्थं च यत्कृतम् । अनं तदेव न ग्राह्यं यत उद्देशदोषभाक् ॥ ८० ॥ ..
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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