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त्रैवर्णिकाचार।
२६३ मौजकी तीन लड़ी एक रस्सी बनावे । उसे तिगुनी कर एक मौंजीबन्धन बनाने । उसे कौपीन और कटिसूत्रके ऊपर कटिलिंग कल्पित करे । बाद " ॐ ही कटिप्रदेशे" इत्यादि मंत्र पढ़कर उसके तीन गांठ लगाकर उस मौंजीबन्धनको कमरके चारों ओर बांधे ॥ २३ ॥
मंत्र-ॐ नमोऽहते भगवत तीर्थकरपरमेश्वराय कटिसूत्रं कौपीनसहितं मौंजीबन्धनं करोमि पुण्यबन्धो भवतु अ सि आ उ सा स्वाहा । इति कटयां मुजीं धृत्वा पुष्पाक्षतान् क्षिपेत् ।
अर्थात्-" ॐ नमोऽर्हते" इत्यादि मंत्र पढ़कर मौंजीको हाथमें लेकर उसपर पुष्प और अक्षत क्षेपण करे।
रत्नत्रयात्मकं सूत्रं यज्ञसूत्रं मुनिर्मलम् ।
हरिद्रागन्धसाराक्तमुरोलिङ्गं प्रकल्पयेत् ॥ २४॥ मंत्र-ॐ नमः परमशान्ताय शांतिकराय पवित्रीकृतार्ह रत्नत्रयस्वरूपं यज्ञोपवीतं दधामि मम गात्रं पवित्रं भवतु अर्ह नमः स्वाहा । इत्यनेन यज्ञोपवीतमुरसि धारयेत् । ___ यह निर्मल यज्ञसूत्र रत्नत्रयस्वरूप है । इसे हल्दी और चन्दनसे रंगे और इसमें उरोलिंग की कल्पना करे । भावार्थ-यह यज्ञोपवीत छातीका चिन्ह है, ऐसा समझे । और “ॐ नमः परमशान्ताय" इत्यादि मन्त्रको पढ़कर उस यज्ञोपवीतको छातीमें धारण करे-पहने ॥ २४ ॥
जिनराजपदाम्भोजशेषसंसर्गपावनीम् ।।
ब्रह्मग्रन्थि शिखामेव शिरोलिंगं प्रकल्पयेत ॥ २५॥ मंत्र-ॐ नमोऽहते भगवते तीर्थकरपरमेश्वराय कटिसूत्रपरमेष्ठिने ललाटे शेखरं शिखायां पुष्पमालां च दधामि मां परमेष्ठिनः समुद्धरन्तु ॐ श्रीं हीं अर्ह नमः स्वाहा । अनेन शिरसि पुष्पमालां धृत्वा तिलकं कृत्वा नवीनवस्त्रोत्तरीयपरिधानं कुर्यात् । ___जो जिनदेवके चरण-कमलसम्बन्धी गन्ध, अक्षत आदि पदार्थोंके स्पर्शस पवित्र हई ब्रह्मग्रन्थियक्त (जिसमें ब्रह्मगांठ लगी हुई है.) अपनी चोटीमें ही शिरोलिंगकी कल्पना करे । भावार्थ-अपनी चोटीको ही शिरोलिंग समझे और उसमें ब्रह्मगांठ लगावे । ॥ २५ ॥
“ॐ नमोऽहते" इत्यादि मन्त्र पढ़कर सिरमें पुष्पमाला धारण कर और तिलक लगाकर नई धोती और दुपट्टा पहने ।
अन्तरीयोत्तरीये द्वे नूत्ने धृत्वा स मानवः । आचम्य तर्पणान्यानपि कृत्वा यथाविधि ॥२६॥ ततोआलिं च संयोज्य गन्धाक्षतफलान्वितम् । आचार्य याचयेत्पुत्रो व्रतानि मुक्तिहेतवे ॥ २७॥ तच्छ्रुत्वा श्रावकाचारावतानि गुरुरादिशेत् । गृहीयात्तानि सम्मीत्या बीजमन्त्र गुरोर्मुखात् ॥२८॥