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________________ २६०. सोमसेनभट्टारकविरचितबाद वे धार्मिक कृत्योंसे बहिष्कृत समझे जायँ । उत्तम ब्राह्मणोंका फर्ज है कि ऐसे पुरुषोंको प्रतिशादि शुभकार्योंमें नियुक्त न करें ॥ ५-६ ॥ अथाचार्यः-पितैवोपनयेत्पूर्वं तदभावे पितुः पिता।.. तदभावे पितुर्धाता सकुल्यो गोत्रजो गुरुः ॥ ७॥ व्रतबन्धं कुमारस्य विना पितुरनुज्ञया। यः करोति द्विजो मोहानरकं सोधिगच्छति ॥ ८॥ लड़केका उपनयन संस्कार पिता ही करावे । यदि पिता न हो तो पितामह ( बापका बाप ), पितामह न हो तो पिताका भाई (चाचा), चाचा भी न हो तो उसके वंशका कोई पुरुष, और यदि वह भी न हो तो उसके गोत्रका कोई पुरुष उसका यज्ञोपवीत संस्कार करावे । पिताकी अनुज्ञाके बिना यदि कोई दूसरा पुरुष अज्ञानवश द्विजके बालकका यज्ञोपवीत संस्कार करे तो वह नरकको जाता है ॥ ७-८॥ ऐसी आज्ञाओंको देखकर प्रायः कितनेही लोग आश्चर्य करने लग जाते हैं और अपनी मोहनी लेखनीयों द्वारा ऊटपटांगं मीठी मीठी त सुनाकर भोले जीवोंकी जिनमतसे श्रद्धा हटाया करते हैं। वे कहते हैं. इस तरहकी बातें लिखनेवालेने जैनियोंकी कर्म-फिलासफीको तो उठाकर ताकमें रख दिया है । पर हम उनसे पूछते हैं कि योग्यता मिलनेपर ऐसे कर्मोंसे क्या नरककी आयु नहीं बँध सकती । क्या आप यह चाहते हैं कि ऐसे कार्य करानेके बाद शीघ्र ही उसे नरकको चला जाना चाहिए । यदि ऐसे कामोंसे नरकायुका बन्ध नहीं हो सकता तो वे कौनसे ऐसे कार्य हैं जिनके जरिये ही नरकायुका बन्ध होता है, अन्यसे नहीं । यदि मान लो कि ऐसे कर्मोंसे नरकायुका बन्ध न होता तो भी जब आप कर्म-फिलासफीको मानते हैं तो कोई न कोई कर्मका बन्ध अवश्य होगा। तब बताइये कि पुण्यबन्ध होगा या पापबन्ध ? यदि मर्यादा उल्लंघन करनेवालेको भी पुण्यबन्ध होगा तो उमास्वामी, समन्तभद्र आदि महर्षियोंने विरुद्ध राज्यातिक्रम नामका चौरीका अतीचार क्या यों ही बतला दिया ? कल्पना करो कि सरकारने कोई एक नियम बनाया । उसका किसीने उल्लंघन किया। इससे उसे जेल जाना पड़ा। तब बताइये. वह नियमके तो हो जेल गया या कर्मके उदयसे ? यदि कहेंगे कि नियम तोड़नेसे गया: तो आपने भी कर्म-फिलासफीको ताकमें रख दी । यदि कहें कि कर्मके उदयसे जेल गया तो उस कर्मका बन्ध उसने कब और किन २ कृत्योंसे किया था ! यदि कहेंगे कि कभी किन्हीं कृत्योंसे हुआ होगा, जिसके फलस्वरूप जेल जाना पड़ा । तो यहांपर भी ऐसा क्यों नहीं मान लेते कि ऐसे कार्योंसे नरकायुका बन्ध हो नाय और कालान्तरमें उसके उदयसे नरक जाना पड़े। मर्यादा उल्लंघन करनेवालेको पुष्पबन्ध होने लगे तो जो प्रत्यक्षमें राजकीय कानूनोंको उल्लंघन कर जेल जाते हैं उन्हें भी पुण्यबन्ध ही होता होगा । धन्य है ऐसे पुण्यबन्धको! जिसका बुरा फल प्रत्यक्षमें भोग रहे हैं और फिर भी वह पुण्य बन्ध ही रहा । अतः मानना पड़ेगा कि ऐसे कर्मोंसे पापबन्ध ही होता है । मान लें कि ऐसे कामोंसे नरकायुरूप महापापका बन्ध नहीं होता तो भी अन्य पाप कर्मोंका बन्ध अवश्य होगा। और उन पापकर्मोंका उदय आनेपर उनके निमित्तसे यह जीव भारी अनर्थ कर बैठे तब तो उनके नरकायुका बन्ध अवश्य हो जायगा । ऐसी हालतमें कहना पड़ेगा कि उसी पापबन्धके परंपरा फलसे ऐसी हालत हुई । तो कारणमें कार्यका या कारण-कारणमें कार्यका उपचार कर
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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