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________________ नवर्णिकाचार। १९९ मांस-त्याग-बतके दोष। .. चर्मस्थमम्भः स्नेहश्च हिंग्वसंहृतचर्म च । सर्व च भोज्यव्याप्यनं दोषः स्यादामिषव्रते ॥ २०७॥ चमड़ेके वर्तनमें रक्खा हुआ जल, घी, तेल आदि, चमड़ेसे ढकी हुई या चमड़ेमें बँधी हुई हींग, तथा जिनका स्वाद बिगड़ गया हो ऐसे दाल भात घी आदि समस्त पदार्थोंका खाना मांस-त्यागव्रतके अतीचार हैं ॥२०७॥ मधु-त्याग-व्रतके अतीचार। प्रायः पुष्पाणि नाश्नीयान्मधुव्रतविशुद्धये । बस्त्यादिष्वपि मध्वादिप्रयोगं नार्हति व्रती ॥ २०८ ॥ शहदके त्यागी पुरुषोंको अपने मधु-त्याग-व्रतकी निर्मलताके लिए प्रायः सभी जातिके फूल न खाने चाहिए; तथा वस्तिकर्म, पिण्डदान, नेत्रांजन आदिमें भी मधु, मांस, मद्यका उपयोग न करना जाहिए। भावार्थ-श्लोकमें प्रायः पद पड़ा हुआ है उससे मालूम पड़ता है कि जिन पुष्पोंको शोध सकते हैं ऐसे महुआ, भिलामा आदिके तथा नागकेसर आदिके सूके फूलोंके खानेका बिलकुल निषेध नहीं है । २०७ ।। पंच उदम्बर-त्याग ब्रतके अतीचार । सर्व फलमविज्ञातं वार्ताकाद्यविदारितम् । तद्वद्वलादिसिम्बीश्च खादेनोदुम्बरव्रती ॥ २०९ ॥ पंच उदुम्बर फलोंके त्यागी गृहस्थोंको सभी जातिके अजान फल, ककड़ी, बेर, सुपारी आदि फल और मटर आदिकी फलियोंको विदारेबिना-उनका मध्यभाग शोधेबिना न खाना चाहिए ॥२०९॥ इन ऊपरके श्लोकोंमें अष्ट मूलगुणोंके अतीचार बताए गए हैं । उनका संक्षेप भावार्थ मात्र यहां दिया गया है। यदि विशेष देखनेकी आवश्यकता हो तो सागारधर्मामृतकी संस्कृत टीका और उसकी भाषा टीकासें देखना चाहिए । - अन्य त्याज्य पदार्थ। अनन्तकायाः सर्वेऽपि सदा हेया दयापरैः । यद्येकमपि तं हन्तुं प्रवृत्तो हन्त्यनन्तकान् ॥ २१० ॥ ये ऊपर बताए गए सभी पदार्थ तथा इसी तरहके और भी पदार्थ अनन्तकाय हैं । इनमें अनन्तानन्त जीव हर समय निवास करते हैं । अतः दयालु पुरुषोंको इन. अनन्तकायोंका याव
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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