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सोमसमभएकविरचित
यह आचार्यकी पूजाका मंत्र है । इस क्षेत्रसे आचार्यों मुरुओंकी पूजा करे ॥ ४४ ॥
ततो जिनपादार्पितचन्दनैः स्वांगभलं कुर्यात् ॥ ४५ ॥ इसके बाद जिन चरणों में अर्पित चन्दनद्वारा अपने शरीरको भूषित करे ॥ ४५ ॥
कलशस्थापन व श्रीपीठस्थापनततः-ॐ हाँ स्वस्तये कलशस्थापनं करोमि स्वाहा ॥ यन्त्रात्प्राक्कलशस्थापनम् ॥ ॐ हाँ नेत्राय संवौषट् । कलशार्चनम् ॥ ॐ हाँ स्वस्तये पीठमारोपयामि स्वहा ॥ यन्त्रात्प्रत्यक् पीठारोपणम् ॥ ॐ हाँ अहं क्षां ठः ठः श्रीपीठस्थापनं करोमि स्वाहा । श्रीपीठप्रक्षालनं करोमि स्वाहा । श्रीपीठप्रक्षालनम् ॥ ॐ हाँ दर्पमथनाय नमः । पीठदर्भः ॥ ॐ हाँ सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रेभ्यः स्वाहा श्रीपीठार्चनम् ॥ ॐ हाँ श्री श्रीलेखनं करोमि स्वाहा । श्रीकारलेखनम् ॥ ॐ हाँ श्री श्रीयन्नं पूजयामि स्वाहा ।
श्रीयन्त्रार्चनम् ॥ ४६॥ ततः इसके बाद “ओं ह्री स्वस्तये कलशस्थापनं करोमि स्वाहा” यह मंत्र पढ़कर यंत्रसे पूर्वकी ओर कलशस्थापन करे । “ओं ह्रीं नेत्राय संवौषट् ” यह पढ़कर 'कलशोंकी पूजा करे। “ओं ह्रीं स्वस्तये पीठमारोपभक्ति स्वाहा " यह पढकर यंत्रके पश्चिमकी ओर पीठारोपणं करे । “ ॐ ह्राँ अहं क्षां ठः ठः श्री पीठस्थापनं करोमि स्वाहा” यह पढकर पीठ स्थापन करे । “ओं ह्री ह्रीं हूँ ह्रौं हः नमोऽहते भगवते श्रीमले पवित्रता जलेन श्रीपीटाक्षालनं करोभि स्वाहा" यह पढकर पीठ प्रक्षालन करे । “ओं ह्रीं दर्षमथनाय नम" यह पढकर पीउपर दर्भ स्वखे । “ओं ह्रीं सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्रभ्यः स्वाहा " यह पढकर पीठकी पूजा करे । “ओं हाँ श्रीँ श्री लेखने करोमी स्वाहा" यह पढकर पीठपर श्रीकार लिखे । “ओं ह्रीं श्रीं श्रीं यंत्रं पूजयाभि स्वाहा " यह पढ़कर श्री यंत्रकी पूजा करे ॥ ४६॥
जिनप्रतिमास्थापनादिमंत्रॐ धात्रे षट् ॥ सिंहासनस्थजिनं श्रीपादयोः स्पृष्ट्वा प्रतिमामानयेत्॥४७॥
“ओं धात्रे वषट् ” यह पढ़ कर निजमंदिरमें सिंहासनपर विराजमान जिन प्रतिमाको पूजाके स्थानमें लावे ॥ ४७॥
ॐ हाँ श्रीवर्गे प्रतिमा स्थापन करोमि स्वाहा । श्रीवर्णे प्रतिमास्थापनम्।।४८।।