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सोमसेनभट्टारकविरचित
नाभौ ॥ ॐ हाँ णमो उवज्झायाणं स्वाहा । दक्षिण कुक्षौ ॥ ॐ हः णमो लोए सव्वसाहूणं स्वाहा । वामकुक्षौ ॥ इति तृतीयोऽ
__ङ्गन्यासः इत्यङ्गन्यासभेदाः ॥ ३४ ॥ “ओं हाँ णमो अरिहंताणं स्वाहा ” इसे पढ कर दाहिनी भुजापर “ओं ही णमो सिद्धाणं स्वाहा” इसे पढकर बाई भुजापर, “ओं हूँ णमो आयरियाणं स्वाहा ” इसे पढ़कर नाभिपर “ओं हौं णमो उवज्झायाणं स्वाहा” इसे पढकर दाहिनी कूखपर “ओं हँः णमोलोए सव्वसाहूणं स्वाहा” इसे पढकर बाई कुखपर जुड़े हुए दोनों हाथोंके अंगूठोंको रक्खे । यह तीसरा अंगन्यास है। इस तरह अंगन्यासके भेद बतलाये ॥ ३४ ॥
वामायामथ तर्जन्यां न्यस्यैवं पञ्चमन्त्रकम् ॥
पूर्वादिदिक्षु रक्षार्थ दशस्वपि निवेशयेत् ॥ १॥ इसके अनन्तर, इसी प्रकार बायें हाथकी तर्जनी ( अँगूठेके पासकी ) उंगलीपर पंचणमोकार मंत्रकी स्थापना कर अपनी रक्षाके लिये पूर्वादि दशों दिशाओंमें उस उँगलीको क्रमसे फिरावे ॥१॥
ॐ क्षां क्षीं हूं क्षे झै क्षों क्षौं क्षं क्षः स्वाहा । इति द्वादश कूटाक्षराणि ॥३५॥ ॐ-हाँ हीं हूं न्हें हैं हों ही हं हः स्वाहा।इति द्वितीयद्वादश शून्यबीजानि॥
इति दशदिशां बन्धः ॥३६॥ “ओं क्षा क्षी' इत्यादि ये दूसरे कूटाक्षर हैं और “ ओं हां ही " इत्यादि ये दूसरे बारह शून्यबीजा हैं। इनसे दशमें दिशाओंकी वन्ध करे। इनमेंसे एक एक अक्षरका एक एक दिशामें न्यास करे इस तरह दशों दिशाओंमें दशों अक्षरोंका न्यास करे । बाद “ओं हां? इत्यादि अक्षरोंका न्यास करे । इसे दिग्बंधन कहते हैं ॥ ३६ ॥
कवचाँस्तु करन्यासं कुर्यान्मन्त्रेण मन्त्रवित् ॥ ३७॥ मंत्रके प्रयोगोंको जाननेवाला पुरुष करन्यास कर मंत्रके द्वारा कवचन्यास करे ॥ ३७॥
ॐहृदयाय नमः । शिरसे स्वाहा ॥ शिखायै वषट् ॥
कवचाय हूं ॥ अस्त्राय फट् ॥ इति शिखाबन्धः ॥३८॥ ___ओं हृदयाय नमः इसे पढ़कर हृदयका "शिरसे स्वाहा” इसे पढ़कर शिरका स्पर्श न करे। चोटीका स्पर्श न कर वषट्कार करे चिटकी बजावे सारे शरीरमें कवच धारण कर लिया है ऐसी धारणा कर 'हंकार' करे और अस्त्रके लिए फटकार करे-तीन वार ताली बजावे इसके बाद चोटीके गांठ लगावे ॥ ३८॥