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वैवामिकामार।
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इति पश्चनमस्कारान् विन्यस्य । ॐहाँ ई वं मंहं संतं अ सि आ उ सा हस्तसम्पुटं करोमि स्वाहा ॥ इति हस्तौ सम्मुटेत् ॥
इति करन्यासः ॥३२॥ दोनों हाथोंकी कनिष्ठा आदिक उंगलियोंके मूलमें (नीचे) तीन रेखाओंके ऊपर, उन रेखाओंके ऊपर पहले पेरुएकी रेखाओंपर और दूसरे पेरुएकी रेखाओंपर क्रमसे और पांचों उगलियोंपर एक साथ पंच नमस्कार-मंत्रकी स्थापना कर “ओं ह्रीं अर्ह वं" इत्यादि मंत्र पढ़कर दोनों हाथ जोड़े। इंसे करन्यास मंत्र कहते हैं ॥ ३२ ॥ ततोऽङ्गुष्ठयुग्मेनैव स्वाङ्गन्यासं कुर्यात् ॥ॐ -हाँ णमो अरिहंताणं स्वाहा।इति मन्त्रं हृदि॥ ॐ ही णमो सिद्धाणं स्वाहा । ललाटे॥ ॐ हूँ णमो आयरियाणं स्वाहा । दक्षिणकर्णे ॥ ॐ हूँ णमो उवज्झायाणं स्वाहा । पश्चिमे ॥ॐ हः णमो लोए सव्वसाहूणं स्वाहा । वामकर्णे॥ ॐ हाँ सामो अरिहंताणं स्वाहा ॥ शिरोमध्ये ।। ॐ न्ही पमो सिद्धाणं स्वाहा । शिरोऽयभागे ॥ ॐ हूँ णमो आयरियाणं स्वाहा । नैर्ऋत्ये ॥ ॐ हाँ णमो उवज्झायाणं स्वाहा । शिरोवायव्यम् ॥ ॐ हः णमो लोए सव्वसाहूणं स्वाहा । शिर ईशान्ये ।
इति द्वितीयन्यासः ॥३३॥ इसके बाद हाथक्के दोनों अंगुठोंसेही स्वांगन्यास करे । उसकी विधि इस प्रकार है।
“ओं ह्राँ णमो अरिहंताणं स्वाहा'' इस मंत्रको पढ़कर दोनों अंगूठोंसे हृदयको “ओं ही णमो सिद्धाणं स्वाहा। इसे पढ़कर ललाटको “ओं हूँ णमो आयरियाणं स्वाहा" इसे पढ़कर दाहिने कानको “ओं ह्रौं णमो उवज्झायाणं स्वाहा ” इसे पढकर शिरके पिछले भागको “ओं ह्राँ णमो लोए सव्यसाहूणं स्वाहा" इसे घटकर वायें कानको “ओं हाँ णमो भरिहंताणं स्वाहा" इसे पढकर शिरके मध्यभागको " ओं ह्रीं णमो सिद्धाणं स्वाहा” इस मंत्रका उच्चारण कर शिरके आग्नेय भागको “ओं हूं णमो आयरियाणं स्वाहा ,, इसका उच्चारण करके सिरके मैऋत्य भागको “ओं हों णमो उवझायाणं स्वाहा." इसका उच्चारण कर सिरके वायव्य भागको “ओं हः णमो लोए सव्वसाहूां स्वाहा इसका उच्चारण कर शिरके ईशान भागको स्पर्शन करे । इसका नाम द्वितीय न्यास है। न्यास नाम रखनेका है इसलिए इन मंत्रीका उच्चारण कर हाथके दोनों अंगूठोंको हृदयादि स्थानोंपर रखना चाहिए ॥ ३३ ॥
ॐ हाँ णमो अरिहंताणं स्वाह्म । दक्षिणे अजे ॥ ॐ हाँ णमो सिद्धाणं स्वाहा ॥ वाम भुजे ॥ ॐ हूँ णमो आयरियाणं स्वाहा ।