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पांचवा अध्याय ।
वासुपूज्यं जगत्पूज्यं लोकालोकप्रकाशकम् ।।
नत्वा वक्ष्येऽत्र पूजानां मन्त्रान् पूर्वपुराणतः ॥१॥ लोक और अलोक को प्रकाश करनेवाले जमत्पूज्य वासुपूज्य भगवान् को नमस्कार कर इस अध्यायमें पूर्वपुराणोंसे लेकर पूजा सम्बन्धी मंत्रों को कहूंगा ॥१॥
सन्ध्यास्थानात्स्वमेहस्य ईशान्यां प्रक्किल्पिते । जिनागारे व्रजेद्धीमानीर्यापथविशुद्धितः ॥२॥ पादौ प्रक्षाल्य गेहस्य कपाटं समुदाटयेत् ॥
मुखवस्त्रं परित्यज्य जिनास्यमवलोकयेत् ॥ ३ ॥ सन्ध्या स्थानसे उठ कर अपने घरकी ईशान दिशामें बने हुए जिन मंदिर को ई-पथ शुद्धि पूर्वक जावे, वहां पर पैरों को धोकर जिन मन्दिर के किबाड़ खोले और जिनमांदर के दरवाजेपर पड़े हुए पड़देको एक ओर सरकाकर जिन भगवानके मुखका अवलोकन, और दर्शन करे ॥ २-३॥
कपाटोदाटनॐ ही अहं कपाटमुध्दाटयामि स्वाहा । कपाटोद्धाटनम् ॥१॥ यह मंत्र पढ़कर मंदिरके किवाड़ खोले ॥१॥
द्वारपालानुज्ञापनॐ न्हाँ अर्ह द्वारपालमनुज्ञापयामि स्वाहा ॥ द्वारपालानुज्ञापनम् ।।२।। यह मंत्र पढ कर द्वारपाल को अपने भीतर जानेकी सूचना कर दे ॥२॥ ॐ हाँ अर्ह निःसही ३ रत्नत्रयपुरस्सराय विद्यामण्डलनिवेशनाय सममयाय निस्सही जिनालयं प्रविशामि स्वाहा ॥ अन्तःप्रवेशनमन्त्रः ॥३॥ यह मंत्र पढकर जिन मन्दिरमें प्रवेश करे ॥३॥
ईर्यापथशोधनःईपिथे प्रचलताऽद्य मया प्रमादादेकेन्द्रियप्रमुखजीवनिकायबाधा । निर्वर्तिता यदि भवेदयुगान्तरक्षामिथ्या तदस्तु दुरितं गुरुभक्तितो मे॥४॥
इर्यापथशोधनम् ॥४॥