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________________ १०६ सोमसेमभट्टारकविरचित पहले पहल वायुकुमार, भेषकुमार, अशिकुमार, वास्तुदेवता और नागकुमारकी पूजा करे । पश्चात् क्षेत्रपाल, गुरु, पितर और बाकीके देवोंकी उनकी पूजाविधिके अनुसार पूजन करे । तथा अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, और सर्वसाधु तथा श्रुतदेवताकी युक्तिपूर्वक पूजा कर पुण्याहवाचन पढ़े ॥ १२० ॥ १२१ ॥ चक्रत्रयं दक्षिणेऽस्मिन् वामे छत्रत्रयं यजेत् । पूर्णकुम्भं पुरोभागे यक्षयक्ष्यौ च पार्श्वयोः ॥ १२२ ॥ जिन भगवान के दक्षिणकी ओर स्थापित चक्रत्रयकी, बाई ओर छत्रत्रयकी, सामने पूर्ण कुंभोंकी और दोनों पसवाड़ों की ओर विराजमान यक्ष, यक्षियोंकी पूजा करे ॥ १२२ ॥ कुण्डस्य पूर्वभागे तु दर्भासनेऽवरे मुखः । पद्मासनं समाश्रित्य पूजाद्रव्यं तु विन्यसेत् ॥ १२३ ॥ होमद्रव्यप्रदानाय शिष्यवर्ग नियोजयेत् । मौनं व्रतं समादाय ध्यायेच्च परमेश्वरम् || १२४ ॥ होमकुंडकी पूर्वदिशामें रक्खे हुए दर्भके आसनपर पश्चिमकी ओर मुख कर पद्मासन से बैठे और अपने पास में पूजाद्रव्यको रक्खे । होमद्रव्यको देनेके लिए शिष्योंकी न हों तो स्वयं करे ) और मौनव्रत लेकर परमात्माका ध्यान करे || १२३ ॥ नियोजना करे ( शिष्य १२४ ॥ जिनेंद्रमर्घ्यदानेन परात्मानं च तर्पयेत् । मध्ये कुण्डं सुगन्धेन विलिखेदग्निमण्डलम् ॥ १२५ ॥ सम्पूज्य होमकुण्डं तमपिं सन्धुक्षनेत्परम् । नूतनानिर्भवेद्योग्यो होमसन्धुक्षणे तदा ।। १२६ ।। जिनेन्द्रको अर्ध देकर उनका तर्पण करे । कुंडके मध्यभागमें सुगन्ध द्रव्यसे अग्निमंडल लिखे । पश्चात् होमकुंडकी पूजा कर उसमें अग्नि जलावे । उस समय होमद्रव्य के जलानेमें ताजा अग्नि टीक रहती है ।। १२५ ।। १२६ ॥ दर्भपूलं पवित्रं तु रक्तवस्त्रेण वेष्टितम् । तेन सज्वालयेत्कुण्डं स्वमन्त्रेण ससर्पिषा ॥ १२७॥ शुद्ध दर्भके पूले पर रक्त वस्त्र लपेट कर उससे और घृतसे मंत्रोच्चारण पूर्वक कुण्ड में अभि जलावे ॥ १२७ ॥
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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