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________________ सोमसेनमहाकविरचित मूर्भुवः स्वः स्वधा स्वाहा पवित्रं पावनं परम् । पूतं भागवतं ज्योतिः पुनीतान्मम मानसम् ॥ १४८ ॥ इत्युच्चार्य परमात्मानं नमस्कुर्यात् । . इन तीन श्लोकोंको पढ़कर परमात्माको नमस्कार करे । ततो जलाञ्जलिं गृहीत्वा झं व व्हः पः हः स्वाहा । इति मन्त्रमुच्चारयन् प्रदक्षिणं परिक्रम्य पूर्वस्यां दिशि जलं विसृजेत् । इसके पीछे हाथमें जलांजलि लेकर “ हूँ वँ " इत्यादि मंत्रका उच्चारण करता हुआ प्रदक्षिणा रूपसे चारों ओर घूमकर पूर्व दिशामें उस जलका विसर्जन करे। ततोऽपि मुकुलितकरकुड्मलः सन् “ॐ नमोऽहते भगवते श्रीशान्तिनाथाय शान्तिकराय सर्वविधप्रणाशनाय सर्वरोगापमृत्युविनाशनाय सर्वपरकृतक्षुद्रोपद्रवविनाशनाय मम सर्वशांतिर्भवतु ।" इत्युच्चार्यइसके बाद, दोनों हाथोंको मुकुलित कर “ॐ नमोऽहते " इत्यादि मंत्रका उच्चारण कर पूर्व दिशाकी ओर मुख कर पूर्वस्यां दिशि इन्द्रः प्रसीदतु पूर्व दिशा में इन्द्र प्रसन्न हो, ऐसा कहे । आमेय दिशाकी तरफ मुख कर आग्नेयां दिशि आग्निःप्रसीदतु आग्नेय दिशामें अग्निकुमार प्रसन्न हो, ऐसा कहे । दक्षिण दिशामें मुख कर, दक्षिणस्यां दिशि यमः प्रसीदतु दक्षिण दिशामें यम प्रसन्न हो, एसा कहे । नैऋत दिशामें मुख कर नैर्ऋत्यां दिशि निऋतः प्रसीदतु नैऋत्य दिशामें निकत प्रसन्न हो, ऐसा कहे । पश्चिम दिशामें मुख कर पश्चिमस्यां दिशि वरुणः प्रसीदतु पश्चिम दिशामें वरुण प्रसन्न हो, ऐसा कहे । वायव्य दिशामें मुख कर वायव्यां दिशि वायुः प्रसीदतु वायव्य दिशामें वायुकुमार प्रसन्न हो, ऐसा कहे। उत्तर दिशामें मुख कर उत्तरस्यां दिशि यक्षः प्रसीदतु उत्तर दिशामें यक्ष प्रसन्न हो, ऐसा कहे । ईशान दिशामें मुख कर ईशान्यां दिशि ईशानः प्रसीदतु ईशान दिशामें ईशानदेव प्रसन्न हो, ऐसा कहे । अधो दिशाकी तरफ दृष्टि डाल कर अधरस्यां दिशि घरणेन्द्रः प्रसीदतु अधो दिशामें घरणेंद्र प्रसन्न हो, ऐसा कहे । ऊपरकी तरफ दृष्टि कर ऊर्ध्वायां दिशि चन्द्रः प्रसीदतु उर्द्ध दिशामें चन्द्र प्रसन्न हो, ऐसा कहे ॥२॥ इति दशदिक्पालान्प्रसाद्य सन्ध्यावन्दनां निवर्तयेत् । इस तरह दश दिक्पालोंको प्रसन्न कर सन्ध्यावन्दना पूरी करे। अब इसके बाद करनेकी क्रिया बताते हैं:अथोत्तरक्रिया । तदनन्तरमुपविश्य सव्यजान्वये दर्भगर्भ मुकुलीकृत्य करकुङ्मलमधरीकृत्य वामहस्तं विन्यस्य
SR No.023170
Book TitleTraivarnikachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSomsen Bhattarak, Pannalal Soni
PublisherJain Sahitya Prasarak Karyalay
Publication Year1924
Total Pages440
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
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