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________________ ( ६३ ) तथा दीर्घ प्रयत्न दोनोंका योग होने पर द्रव्य लाभ हो उसमें आश्चर्य ही क्या है ? कुछ कालके अनन्तर उनने बहुतसा किराना खरीदा तथा अनेकों जहाज भरके वहांसे सुख पूर्वक विदा हुए। एक समय दोनों जहाजके छज्जे ( डेक ) में बैठे थे कि समुद्र में तैरती हुई एक संदूक पर उनकी दृष्टि पडी । शीघ्रही उन्होंने मल्लाहों द्वारा उसे बाहर निकलवायी 'उसके अन्दरसे जो कुछ निकलेगा उसे आधा २ बांट लेंगे' यह निश्चय करके संदूक खोली, उसमेंसे नीम के पत्तोंमें लपेटी हुई एक नीलवर्णकी कन्या निकली जिसे देख कर सबको आश्चर्य हुआ । शंखदत्त बोला कि, "इस कन्याको किसी दुष्ट सर्पने काटा है इससे किसीने इस जलमें बहा दी है. " यह कह तुरन्त उसने मंत्र द्वारा उस पर जल छिड़कर सचेतन की व हर्षसे कहने लगा कि, "मैंने इसे जीवित की है इसलिये मेनकाके समान इस सुन्दररमणी से मैं ही विवाह करूंगा " यह सुन श्रीदत्त भी कहने लगा कि, "शंखदत्त ! ऐसा न कहो, कारण कि मैंने पहिले ही से कहा था कि 'आधा आधा भाग बांट लेंगे, तद: नुसार इस कन्याको मै लूंगा तथा तेरे आधे भागके बदले तुझे द्रव्य दे दूंगा" · जिस भांति मदनफल ( मेनफल ) के खाने से बमन हो जाता है उसी तरह ऊपर लिखे अनुसार विवाद से दोनों जनोंन स्त्रीसंभोग अभिलाषासे पारस्परिक प्रीति त्याग दी। कहा
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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