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________________ (६२) जो अपने पास नौका न हो अथवा नौकाका मल्लाह उत्तम न हो तो समुद्र पार कैसे कर सकते हैं ?" यह कह द्रव्य साथ लेकर सोमश्रेष्ठी चुप चाप वहांसे चला गया। सत्य है पुरुष स्त्रीके लिये दुष्कर-कार्य भी करसकते हैं , देखो ! क्या पांडवों ने द्रोपीके लिये समुद्र पार नहीं किया था ? सोमश्रेष्ठीके विदेश चले जानेके बाद श्रीदत्तको एक कन्या उत्पन्न हुई, अवसर पाकर दुर्दैव भी अपना जोर चलाता है । श्रीदत्तने मनमें विचार किया कि, "धिकार है ! मुझे मुझपर कितने दुःख आ पडे. एक तो मातापिताका वियोग हुआ, द्रव्यकी हानि हुई, राजा द्वेषी हुआ और तिस पर भी कन्याकी उत्पत्ति हुइ । दूसरेको दुःखमें डालकर संतोष पाने वाला दुर्दैव अभी भी मालूम नहीं क्या करेगा ?" इस भांति चिन्ता करते दस दिन व्यतीत होगये । तत्पश्चात् उसके एक मित्र शंखदत्तने उसे कहा कि, "हे श्रीदत्त ! दुःख न कर । चलो, हम द्रव्य उपाजनके हेतु समुद्र यात्रा करें, उसमें जो लाभ होगा वह हम दोनों समान भागसे बांट लेंगे". __श्रीदत्तने यह बात स्वीकार की और अपनी स्त्री तथा कन्याको एक सम्बन्धीके यहां रख कर शंखदत्तके साथ सिंहलद्वीपमें आकर बहुत वर्ष तक रहा। पश्चात् अधिक लाभकी इच्छासे कटाह द्वीपमें जाकर सुख पूर्वक दो वर्ष तक रहा। क्रमशः दोनोंने आठ करोड द्रव्य उपार्जन किया । देवकी अनुकूलता
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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