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________________ ( ६० ) उसकी स्त्री सोमश्री अत्यन्त सुन्दर थी । उसको श्रीदत्त नामक एक पुत्र तथा श्रीमती नामक पुत्र--वधू थी । इन चारोंका मिलाप उत्तम पुण्यके योगही से हुआ था। कहा भी है कि - यस्य पुत्रा वशे भक्ता, भार्या छंदोनुवर्तिन। । विभवेष्वपि संतोषस्तस्य स्वर्ग इहैव हि ॥ १॥ जिस पुरुषका पुत्र आज्ञाकारी हो, स्त्री पतिव्रता तथा आज्ञाधारिणी हो तथा वह मिले उतने ही द्रव्यमें संतुष्ट हो उसे यही लोक स्वर्ग है । एक समय सोमश्रेष्ठि स्त्री सहित वायु सेवनार्थ उद्यानमें गया । देवयोगसे राजा सूरकान्त भी उसी उद्यान में आया। वहां सुन्दर सोमश्रीको देखकर उस पर आसक्त हो गया और राग वश होकर क्षण मात्रमें उसे अपने अन्तःपुरमें भेज दिइ । सत्य है-तरुणावस्था, धनकी विपुलता, अधिकार तथा अविवेक इन चारों से कोई एक वस्तु भी हो तो अनर्थकारी है तो फिर जहां चारों एकत्र हो जावे वहां अनर्थ उत्पन्न होनेमें संशय ही क्या है ? सोमश्रेष्ठिन मंत्री आदिसे प्रेरणा की तदनुसार उन लोगोंने युक्ति पूर्वक राजाको समझाया कि "महाराज ! अन्याय अकेला ही राजरूप लताको जलाकर भस्म कर देनेके लिये दावाग्निके समान है, ऐसी अवस्थामें कौन राज्यवृद्धिकी इच्छुक व्यक्ति परस्त्रीकी लालसा करता है ? सदैव राजा लोग ही प्रजाको अन्याय मार्गसे बचाते हैं उसके बदले यदि स्वयं वेही अन्याय
SR No.023155
Book TitleShraddh Vidhi Hindi Bhashantar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnashekharsuri
PublisherJainamrut Samiti
Publication Year1930
Total Pages820
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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